भारत में बंगलादेशियों की संख्या कितनी है , यह प्रश्न सदा विवादास्पद रहा है । भारत सरकार के गृहमंत्री पी चिदम्वरम भी कहते रहते हैं कि अवैध की संख्या कैसे बताई जा सकती है ? उनका कोई रिकार्ड तो रखा नहीं जा सकता । बात उनकी लाख टके की है । लेकिन अवैध के अनुमान के भी कुछ तरीके होते हैं , जिसके आधार पर अनुमान लगाये जाते हैं । लेकिन जहां तक देश में अवैध बंगलादेशियो का ताल्लुक है , उसके बारे में सरकार की टालमटोल का एक मुख्य कारण , उनको लेकर दलीय नीति का है । कांग्रेस पार्टी अवैध बंगला देशियों को वोट राजनीति के कारण प्रश्रय देती है , जिसके कारण उस की सरकार इनकी संख्या के अनुमानों से भी बचती है । कुछ साल पहले तक असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई असम में अवैध बंगलादेशियों के अस्तित्व से ही इन्कार करते थे । यही स्थिति सी पी एम की है । कुछ साल पहले तक पश्चिमी बंगाल सरकार ही इन बंगलादेशियों को राशनकार्ड बगैरहा मुहैया करवाती थी । बंगला देश सरकार की दृष्टि में भारत में कोई बंगलादेशी नहीं है । पिछले दिनों एक रुचिकर पुस्तक एशिया-२०३० प्रकाशित हुई थी, जिसमें एक निबन्ध जाने माने समाजशास्त्री डा० आनन्द कुमार का भी था । आनन्द कुमार ने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया था कि आधिकारिक तौर पर बंगला देश सरकार इस बात से मुनकिर होती है कि भारत में अवैध बंगला देशी हैं , लेकिन व्यक्तिगत बातचीत में वहाँ के सभी राजनीतिज्ञ स्वीकारते हैं कि बड़ी संख्या में बंगलादेशी भारत में जा रहे हैं । भारतीय पुलिस सेवा के एक अधिकारी , बलडीत राय , जो असम में पुलिस प्रमुख भी रहे , ने १९९३ में , भारत के खिलाफ जनसांख्यिकी आक्रमण नाम की एक पुस्तक लिखी थी । इस पुस्तक में उनका अनुमान था कि भारत में इस समय डेढ़ करोड़ बंगलादेशी हैं , लेकिन साथ ही उन्होंने आगाह भी किया था कि यह अनुमान संकुचित भाव से लगाया गया है , असली संख्या इस अनुमान से कहीं ज़्यादा हो सकती है । अंग्रेज़ी भाषा में उन्होंने इसके लिये "कंज़रवेटिव एस्टीमेट" शब्द का इस्तेमाल किया था । इससे पहले १९९१ में उनकी एक और पुस्तक , क्या भारत इस्लामी बनने जा रहा है ? छपी थी । इस में उनका अनुमान था कि भारत में दो करोड अवैध बंगला देशी हैं । इसका अर्थ हुआ कि १९९० से १९९३ के बीच बंगलादेशियों की संख्या दो करोड के आसपास रही होगी । क्योंकि वे अपने १९९३ के डेढ करोड के अनुमान के बारे में स्वयं ही कहते हैं कि संख्या इससे कहीं ज्यादा है । उनके अनुमान के अनुसार २००० तक और पांच करोड बंगलादेशी भारत में घुसने का प्रयास करेंगे । बलजीत राय असम पुलिस के मुखिया रह चुके हैं । उनके अनुमान इसलिये भी सत्य के करीब माने जा सकते हैं क्योंकि उन्हें कोई चुनाव नहीं लडना है । उनकी गणना को ही यदि सही मान लिया जाये तो २०१२ तक तो बंगलादेशियों की संख्या चार करोड को पार कर चुकी होगी । केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री एम रामचन्द्रन ने २०११ में संसद को बताया था कि कि पिछले दस सालों में ही लगभग डेढ़ करोड़ अवैध बंगलादेशी भारत में घुसे हैं । यदि एक दशक में डेढ़ करोड़ आ सकते हैं तो चार दशकों में कितने आये होंगे , इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । क्योंकि अवैध घुसपैठ का काम १९७१ से बदस्तूर जारी है ।१४ जुलाई २००४ को संसद में प्रकाश जायसवाल ने बताया था कि भारत में एक करोड़ बीस लाख के लगभग बंगलादेशी हैं । असम के राज्यपाल अजय सिंह ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय को लिखा था कि असम में हर रोज़ छह हज़ार बंगलादेशी घुसते हैं । मामला प्रेस को लीक हो गया तो सरकार के दबाव में उन्हें कहना पड़ा कि यह संख्या सारे देश में घुसने वाले बंगलादेशियों की है । दिल्ली में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डा० दामिनी लाऊ ने जनवरी २०१२ में ही अपने एक निर्णय में सरकार को फटकार लगाई कि तीन करोड़ अवैध बंगलादेशी वे सुविधाएँ ले रहे हैं जो भारतीय नागरिकों को मिलनी चाहिये । दो साल पहले २००८ में विश्व हिन्दु परिषद के मंत्री डा० सुरेन्द्र जैन ने भारत में अवैध बंगलादेशियों की संख्या तीन करोड़ से भी ज़्यादा बताई थी और यह भी कहा था कि परिषद इनको भारत से बाहर निकालने के लिये बाकायदा अभियान चलायेगी । हिन्दुस्तान टाईम्स ने सात नबम्वर २००३ में एक कथा प्रकाशित की थी जिसके अनुसार आई बी की एक रपट के अनुसार उस समय अनुमानित बंगलादेशी डेढ़ करोड़ थे । वैसे यदि अपने आप को समाजशास्त्री कहने वाले राम पुनियानी की मानें तो इक्का दुक्का केस को छोड़कर इधर कोई अवैध बंगलादेशी है ही नहीं । इन्द्रजीत गुप्ता ने ६ मई १९९७ को बताया था कि भारत में अवैध बंगलादेशियोंकी संख्या एक करोड़ है । अपने दस अगस्त १९९८ के अंक में इंडिया टुडे ने यह संख्या एक करोड़ आठ लाख के लगभग बताई थी । लेकिन पत्रिका ने केवल सात प्रान्तों में अवैध बंगलादेशियों की संख्या का मीजान लगाया था ।इसका अर्थ हुआ कि १९९७-१९९८ में ःारत के गृहमंत्री और इंडिया टुडे देश में एक करोड अवैध बंगलादेशियों के बारे में सहमत थे । रामचन्न्द्रन द्वारा बताये गये डेढ करोड २००० के बाद के हैं । इन्द्रजीत गुप्ता और रामचन्द्रन , दोनों द्वारा आधिकारिक तौर पर बताई गई संख्या को ही स्वीकार कर लिया जाये तो २०१२ में अवैध बंगलादेशियों की संख्या साढे तीन करोड से भी ज्यादा होनी चाहिये । इनके अनुमान भी कंजरवेटिव एस्टीमेट ही कहे जायेंगे क्योंकि ये दोनों महानुभाव नीति के कारण बंगलादेशियों के मामले को उठाना भाजपा का साम्प्रदायिक एजेंडा मानते थे । दिल्ली से प्रकाशित अंग्रेज़ी पत्रिका उदय इंडिया में प्रकाशित एक आलेख के लेखक प्रकाश नंदा के अनुसार ," आई बी में मेरे सुत्रों के अनुसार भारत में बंगलादेशियोंकी संख्या तीन से चार करोड तक है । बोडो और अवैध बंगलादेशियों में हुये संघर्ष के दौरान संघ और विद्यार्थी परिषद ने कर्नाटक मे असम बचाओ फ़ोरम बनाया था । उसके नेता प्रभाकर भट्ट कलाडका के अनुसार देश में रह रहे चार करोड़ बंगलादेशियों को तुरन्त बाहर करना चाहिये । पिछले दिनों जयपुर में संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद सरकार्यवाह भैया जी जोशी ने कहा कि देश में रह रहे साढ़े तीन करोड़ बंगलादेशियों को निकाल बाहर किया जाना चाहिये । इन सब अनुमानों का यदि वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाये तो सहज ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इक्कीसवाीं सदी के पहले दशक में भारत में चार लाख बंगलादेशी डटे हुये हैं ,जिन्हें न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बाबजूद भारत सरकार की बाहर निकालने में कोई रुचि नहीं है ।