-लीना
पिछले दिनों नए चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने कहा कि पेड न्यूज पर आयोग की पैनी नजर रहेगी। ऐसा कह कर उन्होंने भी सर्वविदित पेड न्यूज की वास्तविकता पर मुहर तो लगा ही दिया है यह भी जताया कि वे इससे चिंतित भी हैं।
स्पष्ट है पेड न्यूज हमारे लोकतंत्र की जड़ों को खोखला करने पर उतारू है। खासकर चुनाव का वक्त ऐसा है जब आम जनता सभी दलों की वास्तविक स्थितियों को जान समझकर अपना बहूमूल्य वोट किसे दे यह निर्धारित करती है।
चुनाव के वक्त मीडिया की यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है। तब मीडिया कसौटी पर होता है। मीडिया का दायित्व है कि पाठक को सही-सही जानकारी दे। ऐसा किसी भी देश में माना जाता है कि चुनाव के समय मीडिया सही-सही जानकारी दे। ये मीडिया का माना हुआ कर्तव्य है। लेकिन आज मीडिया खबरों को विज्ञापन बनाकर बेच रही है। ऐसे में चैथा खंभा चुनाव में स्वतंत्र होकर खड़ा नहीं रह पाया है। उसको जो भूमिका लोकतंत्र में निभानी थी वो उसने नहीं निभायी। अगर चुनाव के वक्त ही मीडिया अपनी भूमिका पूरे दायित्व से नहीं निभाती है तो कब निभायेगी \ मीडिया की जिम्मेदारी होती है कि वह निर्णायक क्षणों में पाठकों को सही-सही जानकारी दे ताकि वह तय कर सके कि किस पार्टी व दल को वोट देना है।
पत्रकारिता लोकतंत्र में साधारण नागरिक के लिये एक वो हथियार है जिसके जरिये वह अपने तीन स्तम्भों न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका की निगरानी करता है। प्रख्यात पत्रकार स्व. प्रभाष जोशी जी ने कहा था अगर पत्रकारिता नष्ट होगी तो हमारे समाज से हमारे लोकतंत्र की निगरानी रखने का तंत्र समाप्त हो जायेगा। साथ ही लोकतंत्र पर उसके स्वतंत्र नागरिक व सच्चे मालिक का अधिकार का भी अंत होगा। इसलिये पत्रकारिता के साथ जो कुछ हो रहा है वह मात्र एक व्यावसायिक चिंता के नाते नहीं करना चाहिये। पिछले लोकसभा और कुछ विधानसभा चुनाव के दौरान पैसे लेकर खबर छापने से मीडिया में जो हलचल पैदा हुई थी उसे सामने लाने में स्व. जोशी जी की भूमिका अहम रही थी। उन्होंने मीडिया के अंदर उपजे इस सोच के खिलाफ जब देश भर में मुहिम चला कर मीडिया की पोल खोलनी शुरू की थी तो केवल मीडिया के अंदर ही भूचाल नहीं बल्कि मीडिया से जुडे आमखास लोग भी सकते में आ गय थे। पत्रकारों के बीच बहस भी छिड़ गयी थी। लेकिन वह दो खेमे में बंटा नजर आया। एक वह जो उपरी तौर पर पेड न्यूज के खिलाफ आया तो दूसरा जिसने इस मसले पर चुप्पी साधने में ही भलाई समझी।
हालांकि पैसे लेकर खबर छापने की मीडिया की कारगुजारियों पर इससे पूर्व के मुख्य निर्वाचन आयुक्त नवीन चावला भी चिंता व्यक्त कर चुके हैं और इसे गलत करार दिया था। भोपाल में नेशनल इलेक्शन वाच यानी राष्ट्रीय चुनाव निगरानी नामक स्वैच्छिक संगठन की ओर से आयोजित छठे राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्री चावला ने पैसे लेकर खबर देने को सबसे गलत बताते हुए मीडिया से आग्रह किया कि इस बुराई को रोकने के लिए वे आत्म संयम अपनाये। पत्रकारिता की इस बुराई पर सांसद में भी चिंता व्यक्त हो चुकी है।
पर सबसे गंभीर बात यह है कि बिकाऊ पत्रकारिता के खिलाफ चिंता कहीं और व्यक्त की जा रही है। मीडिया जगत से बाहर के लोग विचार विमर्श कर रहे है। स्वयं मीडिया जगत इसके प्रति गंभीर नहीं दिख रहा है। ऐसा लगता है कि वह चुनाव को कमाई का प्रमुख सीजन मान ही बैठा है। आने वाले दिनों में बिहार सहित कई राज्यों में चुनाव होने वाले है। ऐसे में चुनाव आयुक्त की चिंता किस हद तक दूर हो पाएगी और कैसे दूर हो पाएगी यह तो वक्त ही बताएगा। इसके लिए कौन और किस प्रकार के कदम उठाए जाते है। यह देखना है।
हालांकि मीडिया को पैसे लेकर खबर देने की प्रवृति पर रोक लगाने के वास्ते स्वयं ही मानक तैयार करने होंगे। इससे लोकतंत्र को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है और वह दिन दूर नहीं नजर आ रहा जब लोकतंत्र के लोग यह पूरी तरह मान बैठेंगे कि चुनावी खबरें पूरी की पूरी विज्ञापन है। सोचिए अगर ऐसा होता है तो क्या होगा \ यह एक बड़ा सवाल तो है ही परिणाम स्वयं पत्रकारिता जगत के लिए भी अस्तित्व का होगा। क्योंकि लोग आज भी अखबार-न्यूज चैनल खबरों के लिए खरीदते-देखते हैं सिर्फ विज्ञापनों के लिए नहीं!
paisa hi paisa ki bhasha midia ke dwara padha jana na sirf desh aur samaj balki poore insaniyat ke liye khatre ki ghanti hai .