मोदी की जन से मन की बात के मायने : डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारतीय शास्त्र परंपरा में इस दुनिया के निर्माण के पीछे की एक गाथा है, जो यह बतलाती है कि विचार ही इस जगत का कारक है। भारतीय दर्शन कहता है कि जब चेतना का प्रस्फुटन हुआ तो उसने सबसे पहले संकल्प लिया कि मैं एक से बहुत हो जाऊं, नानाविध रूपों से मेरा प्रकटीकरण हो,अभिव्यक्ति के कई माध्यमों के द्वारा मेरी ही सर्वव्यापकता हो। बाद में यही विचार इस सृष्टी का कारण बना। कहने का आशय यह है कि विश्व में सबसे पहले जो आया वह था विचार, जिसके कारण विस्तार की कालांतर में संभावनाएं विकसित हो सकीं। भारतीय ग्रंथ वेदों से लेकर समस्त प्राचीन साहित्य में विचार की शक्ति का बार-बार जिक्र किया गया है। उसकी ताकत को स्वीकार करते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि एक शक्तिशाली विचार विध्वंस और निर्माण दोनों दृष्टियों से अपना कितना महत्व रखता है।
वर्तमान में हर कोई आज इसके महत्व को स्वीकार करता है, लेकिन बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इसकी महत्ता को समझकर अपने जीवन के क्रम को निर्धारित करें। जिन लोगों ने भी इसे समझा और उसी अनुरूप जीवन जीने का प्रयास किया, वही वास्तव में इस दुनिया को कुछ नया देते हुए देखे गए हैं। इसी संदर्भ में आज नमो के क्रियाकलापों को देखा जा सकता है।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 वीं सदी के भारत में जिस तरह विचार के महत्व को समझकर काम कर रहे हैं उसे देखकर अब लगने लगा है कि भारत का वह दिन दूर नहीं जब वह फिर एक बार वैश्विक ताकत बन कर उभरे। यह ताकत किसी को डराने की नहीं बल्कि विश्वकल्याण की होगी । ऐसा कहने के पीछे का आशय यह है कि नरेंद्र मोदी ने न केवल प्रधानमंत्री बनने के बाद वरन पहले ही जन में संवाद की विचार शक्ति का प्रवाह आरंभ कर दिया था। गुजरात में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जिस विकास मॉडल का डंका चारो ओर बजा, उसके पीछे क्या शक्ति रही होगी, यह अब जाकर बिल्कुल स्पष्ट हो गया है।
नरेंद्र मोदी का सार्वभौमिक विकास को लेकर सीधा फार्मुला है, स्वयं सदैव उत्साह से भरे रहो, और जो संपर्क में आए उसे अपने तेजस्वी, सकारात्मक विचारों से उत्साह से भर दो। यदि किसी का भला नहीं हो रहा होगा तो वह विचारों की सही समझ के बाद अपना भला आप कर लेगा। वैसे भी उत्साह से भरे होने के बाद कमजोर दिखनेवालों के शौर्य से तो इतिहास भी भरा हुआ है।
वस्तुत: मोदी ने लाख कमजोरियों, विपत्तियों, अक्षमताओं और असफलताओं के बीच यही बताने का प्रयास किया है कि स्वयं पर भरोसा करना सीखो,रास्ते खुद बनते चले जाएंगे। पहले वे यह समझाने का प्रयास फेसबुक, ट्वीटर जैसे तमाम सोशल मीडिया माध्यमों के जरिए कर रहे थे और अब यह काम प्रधानमंत्री बनने के बाद पूरे देश के जन गण के मन को सरकारी माध्यमों का सहारा लेकर करने में जुटे हुए हैं। पिछली बार उन्होंने रेडियो के माध्यम से लोगों से अपने मन की बात की थी । उस दिन उन्होंने कहा था कि बातचीत का यह सिलसिला वह आगे जारी रखेंगे और हर महीने में दो या कम से कम एक बार इसके लिए समय निकालने की कोशिश करेंगे। आज अच्छी बात यह है कि वे इसके लिए अब बार-बार समय निकाल रहे हैं।
जब एक राष्ट्र नायक बोलता है जो जनता पर उसका क्या असर होता है। वह आज देश में हुए विकास के प्रयासों, लागातार हो रही आर्थिक प्रगति और लोगों के जज़्बे को देखकर स्पष्ट दिखने लगा है। इसे विचार की शक्ति नहीं तो और क्या कहेंगे कि कल तक जो देश कमजोर लग रहा था, एकाएक दुनियाभर में दहाड़ने लगा। भारत के लोगों के बीच प्रधानमंत्री ने जो संदेश रेडियो के माध्यम से दिया था, आज उस पर देश की जनता ने अमल करना शुरू कर दिया है।
नरेंद्र मोदी ने पिछली बार देश की जनता को याद दिलाया था कि हम अपनी शक्तियों को भूल चुके हैं। हमें अपनी ताकत पहचाननी होगी। हमें खुद उठकर चलना होगा। अगर हम चलेंगे तो देश चलेगा। हर आदमी यदि एक कदम चले, देश खुद-ब-खुद बढ़ जाएगा। विकास के लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों को आगे बढ़ना होगा उनमें अपार शक्ति है। देश की ताकत गांवों में, किसानों में और युवाओं में है। हमें गंदगी से मुक्ति का संकल्प लेना चाहिए। सफाई अभियान से आप 9 लोगों को जोड़ें।
इतना उत्साहित करने के साथ मोदी ने भारत के लोगों को खादी का उपयोग करने का संदेश देकर स्वदेशी के उपयोग के लिए भी प्रेरित किया था। उन्होंने कहा कि खादी के इस्तेमाल से गरीबों का घर चलता है। देश का हर नागरिक एक खादी का कपड़ा जरूर पहनें। उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन कृषि,सिंचाई के मुद्दे, महिला सशक्तीकरण और कौशलपूर्ण भारत सहित अन्य विषयों पर भी अपने विचार रखे थे।
आज देशभर में प्रधानमंत्री की मन की बात का असर यह हुआ है कि देश आज जाग्रत हो उठा है। अधिकारबोध से ज्यादा दायित्वबोध का पाठ प्रधानमंत्री की मन की बात से सीखने को मिली है। वास्तव में नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सही मायनों में जन का महत्व समझा है। उन्होंने जान लिया है कि जीतकर सत्ता के सिंहासन पर बैठने से केवल स्थिर विकास का स्वप्न साकार नहीं किया जा सकता। उसके लिए विकास के हर पायदान पर जनता का साथ जरूरी है। आखिर विकास है भी तो उसी के लिए । सब का साथ सबका विकास यही उनकी गुड गवर्नेंस की थीम है और मोदीजी का जन से मन की बात के मायने भी हैं।