केन्या की राजधानी नैरोबी में एक शापिंग माल में दिनांक २१-९-१३ को दिल दहला देनेवाला आतंकी हमला हुआ। पहले गैरमुस्लिम जनता की पहचान की गई। उन्हें माल में रोक लिया गया। बाकी को सुरक्षित बाहर निकाला गया। फिर रोके गए गैर मुस्लिम समुदाय पर अन्धाधुन्ध फायरिंग की गई। सैकड़ों बेकसूर निहत्थे लोग मारे गए। इसमें आधी संख्या महिलाओं और बच्चों की थी जिसमें कई हिन्दुस्तानी भी शामिल थे। भारत में इसके विरोध में न कहीं मोमबत्ती जलाई गई और ना ही कोई विरोध प्रदर्शन हुआ। इस घटना के २४ घंटे भी नहीं बीते थे कि पेशावर के एक प्राचीन चर्च में भीषण धमाका हुआ। रविवार की ईश-आराधना में शामिल ईसाई समुदाय के ६० से अधिक व्यक्ति मारे गए। यह जघन्य कार्यवाही भी धर्म के नाम पर की गई। मुज़फ़्फ़रनगर का दंगा इस कड़ी की शुरुआत थी। इसमें भी बड़ी संख्या में बेकसूर बेरहमी से मारे गए। दंगा करानेवाला मंत्रिपरिषद में दहाड़ रहा है और निर्दोष ज़मानत के लिए अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। राजनीतिक विरोधियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
इन तीनों स्थानों पर न तो नरेन्द्र मोदी की सरकार है और न भाजपा की। फिर भी आतंकवादी हमले हुए, दंगे हुए। भारत की सेकुलर मीडिया गुजरात के दंगों पर पिछले ११ सालों से छाती पीट रही है, लेकिन इन दंगों के लिए दोषी को भी दोषी कहने के मुद्दे पर मुंह सिल लेती है। यह सोचने का विषय है कि भारत समेत पूरी दुनिया में गैर मुस्लिमों पर ऐसे हमले क्यों हो रहे हैं? वह कौन सी मानसिकता है जो इन हमलावरों को प्रोत्साहित और पुरस्कृत करती है?
शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व और धार्मिक सहिष्णुता का अभाव ही इसका मूल कारण है। एक हिन्दू स्वभाव और संस्कार से ही शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व और सर्वधर्म समभाव में विश्वास करता है। वह हर धार्मिक अनुष्ठान में इसकी घोषणा भी करता है –
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुखभाग्भवेत।
ओम शान्तिः। ओम शान्तिः। ओम शान्तिः।
(गरुड़ पुराण, उत्तरखंड ३५.५१)
सभी सुखी हों, सभी निरापद हों, सभी शुभ देखें, शुभ सोचें। कोई कभी भी दुख को प्राप्त न हो।
ईसाई समुदाय के किसी उग्रवादी या अन्य संगठन ने विगत कई वर्षों में अन्य धर्मावलंबियों की इस प्रकार समूह में नृशंस हत्या की हो, ऐसा उदाहरण नहीं मिलता। ईसा मसीह के उपदेश में करुणा, दया और प्रेम का संदेश है। इसका प्रभाव उनके अनुयायियों पर देखा जा सकता है। जनकल्याण के लिए चिकित्सालय और विद्यालय के साथ अन्य प्रकल्प चलाने में इनकी कोई सानी नहीं है।
इस्लाम की पुस्तकों में वर्णित ‘काफ़िर’ और ‘ज़िहाद’ शब्दों की गलत व्याख्या ही कथित इस्लामी आतंकवादियों को दूसरों पर जुल्म ढाने का लाइसेंस देती है। आज का पूरा विश्व जिस युग में प्रवेश कर गया है, वहां असहिष्णुता और घृणा का कोई स्थान हो ही नहीं सकता। विश्व-शान्ति के लिए सहिष्णुता, सर्वधर्म समभाव और शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व के भाव और संस्कार परम आवश्यक हो गए हैं। हम पुनः मध्य युग की ओर नहीं लौट सकते। लौटना संभव भी नहीं है। ऐसे में मुस्लिम विद्वानों और धर्म गुरुओं पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। उनसे अपेक्षा है कि ‘काफ़िर’ और ‘ज़िहाद’ की आज के परिवेश में मानवता के हित में उचित व्याख्या कर पूरे विश्व में शान्ति स्थापित करने के पुनीत कार्य में अपना अमूल्य योगदान दें।
घृणा का प्रेम से जिस रोज अलंकरण होगा,
धरा पर स्वर्ग का उस रोज अवतरण होगा।
भारत का जन्म ही गलत तौर पर हुआ. गाँधी की बजाय यदि देश का
आधार Savarkar जैसा व्यक्ति रखता तो आज यह दुर्दशा न होती. हो सकता
है गाँधी संत हो, पर राष्ट्र निर्माण करने वाला नहीं था. और नेहरु जैसे
व्यक्तियों के बारे में जितना कम लिखा जाये बेहतर है. पाकिस्तान और
बांग्लादेश में हिन्दुओं के विनाश पर कोंग्रेसी एक शब्द नहीं बोले, पर
गुजरात और मुज़फ्फरनगर दंगों पर अभी तक आंसू बहा रही है.
इस्लाम जब तक इस धरती पर रहेगा ये खून खराबा होता ही रहेगा, अगर हिंसा रोकनी है तो इस्लाम का विनाश और मुस्लिमो को हिंदू या इसायी बनाना ही एकमात्र उपाय है, आने वाले वर्षो मे ये होकर रहेगा बस इन मुल्लो का मनोबल ऐसे ही बढ्ने दो एकाध अटैक अमरीका पर और जिस दिन ये कर देंगे उसी दिन से इस्लाम का खात्मा शुरू हो जायेगा, क्योंकि दिल्ली पर तो नपुंसको का कब्जा हो चुका है इसलिये उम्मीद अमरीका से ही है.
सिन्हा जी,
आपने अच्छा विषय लिया है चौदहवी शताब्दी की बर्बरता या सांप्रदायिक मान्यताओं के आधार पर विश्व समाज को हाँकने की प्रवृत्ति मानवता के विरुद्ध एक अपराध है। जिसे धरमगुरु अपनी अच्छी भूमिका से रोकने का प्रयास कर सकते हैं । विजय मानवतावाद की ही होनी चाहिए और दानवतावाद का हर स्तर पर विरोध होना चाहिए।
सादर।
समीचीन, समयोचित।
कुछ इस्लामी बंधु भी इस्लाम में सुधार चाह रहे हैं।
पर विरोध भी झेल रहे हैं।
सुधार अंदरसे ही होना चाहिए।
लेखक को समयोचित विषय उठाने के लिए धन्यवाद।