चिंतित करता जनादेश

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डा रवि प्रभात

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनावी महाकुंभ शुचिता  एवं पारदर्शिता के साथ संपन्न हुआ , इस बार के चुनावी परिणाम पर केवल भारत नहीं अपितु  संपूर्ण विश्व की दृष्टि लगी हुई थी । सभी लोग किसी न किसी रूप में चमत्कार होने की उम्मीद कर रहे थे, जो प्रधानमंत्री मोदी को पुनः पदासीन होते देखना चाहते थे उनकी अपेक्षा 400 पार जैसे बड़े जनादेश की थी और जो लोग प्रधानमंत्री को पदच्युत देखना चाहते थे उनकी अपेक्षा किसी बड़े उलट फेर की | यद्यपि वास्तविक परिणाम दोनों ही पक्षों को बराबर मात्रा में विस्मित कर गये । 2024 के इन चुनावी परिणामों का विश्लेषण भारत एवं वैश्विक स्तर पर लंबे समय तक किया जाता रहेगा ।

इन चुनाव परिणामों से सत्ता पक्ष एवं विपक्ष की राजनीतिक लाभ-हानि से इतर  उन पहलुओं पर चर्चा करनी अत्यंत आवश्यक है जो संप्रभु भारत राष्ट्र के लिए आगामी समय में चिंताजनक हो सकते हैं ।  2024 के चुनाव परिणाम जब आ रहे थे तो सबका ध्यान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और इंडी  गठबंधन की संख्या पर था लेकिन राष्ट्र-हितैषी  तबके की नजर टीवी स्क्रीन पर तब ठहर गई जब भारत के दो संवेदनशील सीमावर्ती राज्यों पंजाब एवं जम्मू कश्मीर से अलगाववादी तत्वों की बढ़त सामने आने लगी। जैसे-जैसे परिणाम घोषित हुए यह चिंता की लकीरें और गहरी होती चली गई|

पहले बात पंजाब की करेंगे । सीमावर्ती राज्य होने के नाते भारत विरोधी ताकतों ने एक रणनीति के तहत पंजाब में भी अलगाव के बीज बोने  शुरू किये ,  उसको खाद पानी देकर पल्लवित करने का काम भी  किया , लेकिन भारत सरकार की उचित कार्यवाही से वह खतरनाक सिलसिला काफी हद तक नियंत्रित कर लिया  गया । लेकिन पिछले दो-तीन सालों में फिर से एक आहट सुनाई देने लगी है ,  खालिस्तान के नारे और  भिंडरावाले के पोस्टर दिखाई देने लगे हैं,  और इन देश विरोधी मंसूबों की आवाज को मुखर करने के लिए दुबई से अमृतपाल सिंह जैसा मुखौटा भी तैयार करके भेजा गया । समय रहते  केंद्र एवं पंजाब की  राज्य सरकार ने कठोर कार्यवाही करते हुए अमृतपाल सिंह पर रासुका  लगाया, उसे  असम की जेल में भेजा  तब लगा कि इस विषैले सर्प के दंश  से अब पंजाब बच जाएगा । लेकिन ऐसा लगता है कि इस धारावाहिक के कई एपिसोड अभी बाकी है जैसे ही लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई और अमृतपाल सिंह के माध्यम से उसके परिजनों ने घोषणा की कि वह खजूर साहिब लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेगा तभी इस बात की आशंका हो गई थी कि इस अलगाववादी फन  को कुचलना के साधन कम पड़ रहे हैं,  रही सही कसर खजूर साहिब की जनता जनार्दन ने पूरी कर दी , एक ऐसे व्यक्ति को चुनाव जिता कर जो देश के विरुद्ध अलगाव पैदा करने के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत लंबे समय से जेल में बंद है ।

अब बात जम्मू कश्मीर की । जम्मू कश्मीर पिछले कुछ सालों से अलगाववाद  की भयानक आग में निरंतर तप है ,  धारा 370 हटाने के बाद निश्चित तौर पर उस तपिश  में पर्याप्त कमी दिखाई दे रही है । यहां तक कि लोकतंत्र के लिहाज से देखें तो  पिछले 35 सालों में सर्वाधिक मतदान इस बार हुआ है , इस बढे  हुए मतदान का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि धारा 370 के हटने के बाद यह पहला चुनाव था । इस चुनाव का महत्त्वपूर्ण एवं चिंताजनक पहलू यह है कि जम्मू कश्मीर की बारामूला सीट से पूर्व मुख्यमंत्री अमर अब्दुल्ला चुनाव  हार गए और उनको हराने वाला वाला निर्दलीय उम्मीदवार राशिद  इंजीनियर है।

राशिद इंजीनियर अपने भारत विरोधी अलगाववादी विचारों एवं कृत्यों  के लिए जाना जाता है, वह फिलहाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए वित्त पोषण के मामले में जेल में बंद है । इससे पहले भी इंजीनियर को आतंकवादियों के समर्थन के कारण से 2005 में काफी समय तक जेल में रखा गया था।

2024 का जनादेश क्यों चिंतित करने वाला है ? इसके  प्रत्यक्ष  उदाहरण अमृतपाल सिंह और राशिद इंजिनियर हैं । यह दोनों लोग भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में जेल में बंद हैं, जेल से ही इन्होंने चुनाव लड़ा, जनता के बीच वोट मांगने तक नहीं गये , दोनों ही निर्दलीय के तौर पर लड़े और जीते । जबकि इन दोनों के खिलाफ वहां की जनता के पास चुनने के लिए राष्ट्रीय अथवा राज्य स्तरीय दलों के अधिकृत प्रत्याशी मौजूद थे, जो जनता के बीच रहकर उनका समर्थन मांग रहे थे।

जहां एक तरफ भाजपा के अनेक प्रत्याशियों की हार  पर यह विमर्श तैयार किया गया कि प्रत्याशी अच्छा नहीं था, जनता के बीच नहीं जाता था , जनता के सुख-दुख में उसके साथ नहीं खड़ा होता था, जनता का काम नहीं करवा पाता था इसलिए जनता नाराज़ थी आदि,  अगर यही तर्क यहां पर भी लागू किया जाए तो साफ हो जाता है कि जो व्यक्ति पहले से जेल में बंद है, जिसके जेल से छूटने की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं है,  वह जनता के बीच कितना जा पाएगा ,कितना गया होगा , आगे कितना काम कर पाएगा , यह सब बातें सवालों के घेरे में हैं।

परंतु तब भी वहां की जनता ने  सब कुछ जानते समझते हुए इन दोनों लोगों को अपना आशीर्वाद दिया , ऐसे लोगों को जो प्रथम दृष्टया देश विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित पाए गए हैं, भले ही पूर्णतया आरोप सिद्ध होने अभी बाक़ी हैं , ऐसी स्थिति में जो विमर्श अथवा तर्क  भाजपा के प्रत्याशियों की हार के लिए गढ़ा गया , वह इन दोनों की जीत के संदर्भ में तुरंत धराशाई हो जाता है।

मामला इतना भर  नहीं है,  कहीं ना कहीं वहां की जनता का इन दोनों के साथ एक भावनात्मक लगाव रहा है , संकट यह भी है कि क्या वहां की जनता का लगाव केवल इनके साथ ही सीमित है या इनके विचारों के साथ भी उसी तरह का लगाव है । अगर ऐसा है तो किसी न किसी रूप में इस जनादेश की तह तक जाना होगा , जनता की नब्ज  टटोलनी होगी , जनता के मनोभावों को पढ़ना होगा,  आवश्यकता पड़े तो जनता का प्रबोधन भी करना होगा । नहीं तो यह शुरुआत भर है हमें आगे इसका विकराल रूप भी देखना पड़ सकता है। समय की पुकार है कि अलगाववाद का ये पेड़ वटवृक्ष का रूप ले , उससे पहले ही इसकी जड़ों में मट्ठा डालकर इसे समूल नष्ट कर दिया जाए ।

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