बराक  ‘हुसैन’ ओबामा का दुराग्रह__

हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की एतिहासिक अमेरिका यात्रा के अवसर पर पूर्वाग्रहों से ग्रस्त अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 22 जून को सीएनएन को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा कि “राष्ट्रपति जो बाइडन को पीएम मोदी से मिलने पर बहुसंख्यक हिन्दू बहुल भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का उल्लेख करना चाहिए था!”  लगभग कुछ ऐसे ही पूर्वग्रहों से ग्रस्त रहने वाले अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों एवं वहां के कुछ तथाकथित गण्यमान्य व्यक्तियों ने भी अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन को 20 जून को एक पत्र लिखकर उनसे मोदी जी को  में ‘लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास’,’अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता’, ‘अल्पसंख्यकों से धार्मिक असहिष्णुता’ एवं ‘प्रेस की स्वतंत्रता’  जैसे विशिष्ट बिन्दुओं को प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत में उठाए जाने का अनुरोध किया था।

यहां यह उल्लेख करना अति आवश्यक है कि पिछले दिनों राहुल गांधी की अमरीका यात्रा के जो आयोजक थे वे भी मुख्यतः मोदी जी के विरुद्ध अनेक पूर्वग्रहों से ग्रस्त ही है ! इसलिए उनको सत्ताहीनता की पीड़ा से जुझ रहा राहुल गांधी के रूप में एक ऐसा तथाकथित “बुद्धिमान” भारतीय नेता मिल गया जो उनके अनुसार ही भारत के साथ-साथ मोदी जी के विरुद्ध अनेक विवादित वक्तव्य दे कर उनको लुभाने रहा है! ध्यान रहे कि राहुल गांधी के कार्यक्रमों के सभी आयोजक मुख्य रूप से कश्मीर, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि के अमरीकी मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ अमरीकी कुख्यात पूंजीपति सोरोस आदि के भी संगठन सक्रिय थे!

 आपको स्मरण होगा कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने अपनी प्रथम स्वतंत्र भारत यात्रा पर आकर अपने को  इस्लाम से सशक्तरूप से जुड़े रहने की मनोवृत्ति का परिचय दिया है। एक अंग्रेजी समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स के कार्यक्रम  (01.12.2017) को नई दिल्ली में उनके संबोधन व साक्षात्कार में कुछ ऐसा ही विवादित वक्तव्य था। श्रीमान ओबामा ने एक बार पुनः हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति “वसुधैव कुटुम्बकम्” जो पूर्णतः धार्मिक सहिष्णुता व मानवीय मूल्यों पर आधारित है पर बड़े सभ्य ढंग से प्रहार किया था।इस अवसर पर ओबामा जी ने अपने संबोधन में स्पष्ट कहा है कि “भारत की मुसलमान आबादी संगठित है और स्वयं को भारतीय मानती है , इसलिए भारत को अपनी मुस्लिम आबादी को संजोना चाहिये और उनका बड़े दुलार से पालन पोषण करना चाहिये”। उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार करण थापर के साथ हो रहे साक्षात्कार में एक प्रश्न के उत्तर में यह भी जोड़ा कि भारत में असंख्य मुस्लिम आबादी है , जो अधिक सफल व एकजुट है और स्वयं को भारतीय मानती हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ अन्य देशों में ऐसा नहीं है”।

इससे यह स्पष्ट होता है कि एक ( तथाकथित ) मुसलमान के मन में “सर्व धर्म समभाव” व “सर्वे भवंतु सुखिनः” का विचार आता ही नहीं है , चाहे वह अमरीका जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश का प्रमुख ही क्यों न रह चुका हो। बराक हुसैन ओबामा के ऐसे विचारों से हमारे देश में साम्प्रदायिकता व वैमनस्यता का भाव स्वाभाविक रुप से बढ़ सकता है। क्या ओबामा को यह ध्यान नहीं कि परिस्थितिवश आज भारत व अमेरिका सहित विश्व के अधिकांश देश भी कट्टरपंथी मुस्लिम आतंकवादियों से जूझ रहे हैं ? धर्म के आधार पर एक दर्दनाक विभाजन झेल चुके हमारे देश में पुनः अल्पसंख्यक मुसलमानों को बिना कारण भयभीत करके व उनको भड़काने के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रों से कब तक हमको अवनति के मार्ग पर ढकेलने का कुप्रयास जारी रहेगा ? ऐसे में क्या हमको अपने राष्ट्र की बर्बादी के नारे लगाने वालों और पाकिस्तान का झंडा लहराने वालों के प्रति और अधिक सावधान नहीं रहना होगा ?

सम्भवतः ओबामा जी हमारे देश में अरबों-खरबों रुपयों के बजट से अल्पसंख्यक विशेषरुप से मुसलमानों की सहायतार्थ प्रतिवर्ष चलायी जा रही भारी-भरकम योजनाओं से अनभिज्ञ होंगे अन्यथा वे ऐसा न कहते कि “उनका ( मुसलमानों )  बड़े दुलार से पालन पोषण” करना चाहिये ।उनको यह ज्ञान भी होना चाहिए कि भारत में मुसलमानों को बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार प्राप्त हैं। जबकि विश्व के किसी भी अन्य देश यहाँ तक कि मुस्लिम देशों में भी मुसलमानों को इतना नहीं दुलारा जाता जितना कि भारत में इनको सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है।

वैसे भी यह विचित्र ही है कि साम्प्रदायिक सौहार्द, धार्मिक सहिष्णुता व आपसी भाईचारे पर केवल हम राष्ट्रवादियों को ही उपदेश देने की एक गलत परम्परा चली आ रही है। सामान्यतः लोगों की “धर्मनिरपेक्ष मानसिकता”, महात्मा कहे जाने वाले गांधीजी के समान , केवल हिंदुओं को ही अपना परामर्श देने के दुराग्रह से बाहर नहीं निकलना चाहती, क्यों ? क्योंकि हिन्दू प्रायः सहनशील हैं ,उदार हैं , सहिष्णु हैं , विवादों व संघर्षों से बचते हैं और विस्फोट व विनाशकारी कार्यों से दूर रहते हैं।  हमारे इन गुणों /अवगुणों के कुछ ऐसे ही कारणों से उत्साहित होकर ओबामा जैसी मानसिकता वाले प्रभावशाली लोग हमको ही कटघरे में खड़े करने का दुःसाहस करते हैं।

आपको यह भी स्मरण होगा कि अमरीका के राष्ट्रपति के रुप मे अपनी 2015 की भारत यात्रा के अंतिम दिन ओबामा जी ने हमारे संविधान के अनुच्छेद 25 की चर्चा करके हमें धार्मिक सहिष्णुता का पाठ याद कराने का ही प्रयास किया था। परंतु उसी संविधान के “समान नागरिक संहिता” के अनच्छेद 44 पर कोई चर्चा न करने पर उनकी छदम धार्मिक असहिष्णु मानसिकता के ही दर्शन हुये थे।

  हमारा मत है कि राष्ट्र का स्वस्थ निर्माण केवल सत्यमेव जयते व शुद्ध धर्मनिरपेक्षता के ही आधार पर ही होना चाहिए l हमारी वर्तमान सरकार का भी यही मत है कि “राष्ट्र प्रथम” की मान्यता से ही  “सबका साथ,सबका विकास, सबका विश्वास एवं सबका प्रयास” संभव होगा । वर्तमान में श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में जिस प्रकार भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक शक्ति के संचार से वैश्विक शांति को आधार मिल रहा है और इस्लामिक आतंकवाद पर अंकुश लगाने का हर सम्भव प्रयास जारी हैं, उससे भारत विरोधी षडयंत्रकारियों की दुकानें सिमटने लगी हैं l भारत की विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ती सामर्थ्य से भी विरोधियों की भौहें चढ़ना स्वाभाविक है l

अतः साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखने के लिए इस प्रकार के अतिविशिष्ट व्यक्तियों के वक्तव्यों एवं साक्षात्कारों को सरकार को रोकना चाहिए एवं मीडिया को भी ऐसे संवेदनशील विषयों को प्रसारित करने से बचना चाहिए। साथ ही यह सुनिश्चित होना चाहिये कि किसी भी विदेशी को हमारी आंतरिक राष्ट्रीय व सामाजिक  व्यवस्थाओं पर हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नही होना चाहिये। भारतीय मीडिया एवं राष्ट्रवादी बुद्धिजीवियों को अमेरिका आदि देशों में भारत को विशेषता मोदी जी को बदनाम करने वाले इस प्रकार के षडयंत्रों की पोल अवश्य खोलनी चाहिए l

विनोद कुमार सर्वोदय

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