शिव संपूर्ण विश्व के न केवल आराध्य हैं अपितु वह सृष्टि रचना के मूल आधार है

मेरे आराध्य शिव

उमेश कुमार सिंह

भगवान शिव त्रिनेत्रधारी हैं। त्रिकालदर्शी हैं। त्रिलोकी हैं। त्रिदेव हैं। जिनकी जटाओं से गंगा अवतरित है। मस्तक पर चंद्रमा विराजमान हैं। जिनकी लंबी-लंबी जटाएं हैं। शरीर पर बाघ की छाल सुशोभित है। गले में रुद्राक्ष की माला है। शरीर पर अनेक सांप धारण किए हुए हैं। डमरू की धुन पर नृत्य करते हैं। त्रिशूल नामक शस्त्र से रक्षा करते हैं। नंदी उनका वाहन हैं। खीर उनका प्रिय है। भांग उनका भोग है। एक ऐसा व्यक्तित्व जो सदैव मानव कल्याण को तत्पर हैं। प्रकृति संरक्षक हैं। पशु प्रेमी हैं। विज्ञान एवं ज्ञान के मर्मज्ञ हैं। अध्यात्म और धर्म के व्याख्याकारों ने भगवान शिव द्वारा धारण सभी उपमानों की ज्ञानवर्धक व्याख्या की है। एक ओर चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है तो दूसरी ओर गंगा पृथ्वी पर उपस्थित सभी को जीवनदान का प्रतीक है। ऐसे ही तमाम व्याख्या है। शिव का वास्तविक स्वरूप एक वैज्ञानिक का है। इस पुस्तक में विज्ञान, ज्ञान, धर्म और भक्ति के विभिन्न प्रसंगों को समाहित किया गया है।

शिव संपूर्ण विश्व के न केवल आराध्य हैं अपितु वह सृष्टि रचना के मूल आधार हैं। धार्मिक आस्था के प्रतीक रूप में भले ही शिवलिंग की पूजा की जाती हो लेकिन शिव तत्व का वैज्ञानिक आधार आज भी उतना कारगर है जितना भगवान शिव ने स्थापित किया था। शिव एक ओर आदिगुरु हैं तो दूसरी ओर प्राकृतिक संपदा के अनुसंधानकर्ता भी हैं। जहां उन्हें विध्वंसक प्रवृत्ति का माना जाता है तो दूसरी ओर वह गंगाजल को हिमालय पर्वत से निकालकर धरती पर अमृत स्वरूप जल से विकास की नई इबारत लिखते दृष्टिगोचर होते हैं। नृत्य में पारंगत हैं। शल्य चिकित्सा में विशिष्ट हैं। अंतरिक्ष के विश्लेषणकर्ता हैं। एक ओर अर्धनारीश्वर का ज्ञान देते हुए उसका विज्ञान समझाते दिखाई देते हैं तो दूसरी ओर एक सभ्य समुदाय के लिए दशग्रीव के माध्यम से तत्कालीन आतंकवादी जातियों को समूल नष्ट करने की प्रेरणा देते प्रतीक होते हैं। भगवान विष्णु के सागर मंथन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हुए नीलकंठ हो जाते हैं। मार्कण्डेय को महामृत्युंजय मंत्र देकर अकाल मृत्यु से मुक्ति का प्रशस्त करते हैं। श्मशान की भस्म लगाकर वह भय का निस्तारण करने की पहल करते हैं तो नाग को ग्रीवा में लपेट कर नकारात्मकता पर नियंत्रण रखना सीखाते हैं। शिलालिंग निर्मित कर वह मानव समुदाय को यौन शिक्षा देते हैं और पृथ्वी के अंदर संरक्षित विनाशकारी ऊर्जा को नियंत्रित करने का एक यंत्र सौंपते। आज इस यंत्र को हम शिवलिंग कहते हैं। व्यक्ति एक काम अनेक।

ब्रह्मा विष्णु और शिव को सनातन धर्म का संस्थापक माना जाता है। इन तीनों महान आत्माओं के अथक प्रयासों से संपूर्ण मानव समुदाय को एक वैज्ञानिक जीवन पद्धति मिली। सत्ययुग में धरती, सागर, पर्वत, अंतरिक्ष, प्रकृति, वनस्पति, पशुओं, पक्षियों आदि के सभी लक्षणों का गहन अध्ययन किया गया। उनके परिणाम ज्ञात किए गए। जो स्वास्थ वर्धक था उसका प्रचार-प्रसार किया गया। जो स्वास्थ्यवर्धक नहीं था उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यह सब कार्य ब्रह्मा जी के नेतृत्व में संपन्न हुआ। सागर का दायित्व विष्णु जी ने संभाला और पर्वत एवं मैदानी क्षेत्रों को शिव ने परीक्षण और सर्वेक्षण कर जो मानव कल्याणार्थ उचित था वह किया। पाश्चात्य इतिहासकारों, विद्वानों और धर्म गुरुओं ने आर्यावर्त के इस सिद्धांत को स्वीकार करते हुए आंग्ल भाषा के तीन अक्षरों को मिलाकर एक शब्द गढ़ा – GOD अर्थात G अक्षर से पाश्चात्य विद्वानों ने बताया जेनरेटर, O अक्षर से ऑपरेट और अंतिम अक्षर D का मतलब पाश्चात्य विद्वानों ने तय किया डिस्ट्रॉयर। सीधे और सरल अर्थ है आंग्ल भाषा का शब्द GOD  हमारे ब्रह्मा विष्णु और शिव का द्योतक है। ब्रह्मा जी संस्थापक हैं। वह नवीनतम शोध को प्रोत्साहित करते हैं। विष्णु जी व्यवस्थापक हैं। सभी व्यवस्थाए इन्हीं के द्वारा होती हैं और शिव, शिव विध्वंस एवं निर्माण के देवता हैं। देवता शब्द का संधि विच्छेद संभव है¬? आइए जानते हैं – द+ए+अ+व+अ+त+आ = देवता।। क्या यह सही है ? भाषाविदों के अनुसार देवता शब्द का संधि विच्छेद संभव नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि देवता अपने आप में सम्पूर्ण हैं।

यह सिद्धांत प्राचीन काल में विकसित कर लिया गया था। इस तथ्य को पाश्चात्य जगत ने भी आत्मसात किया। सत्ययुग एक ऐसा दौर था जब विज्ञान और अनुसंधान के माध्यम से मानव समुदाय को वैज्ञानिक जीवन पद्धति प्रदान करना तत्कालीन देवताओं और ऋषियों का मुख्य उद्देश्य था। जिसमें वह पूरी तरह से सफल रहे। कालांतर में बदलती परिस्थितियों के कारण जीवन शैली में क्षेत्रानुसार बदलाव हुए। आज जब सारी दुनिया तांत्रिक प्रणाली की गुलाम होती जा रही है तब विश्व मानव समुदाय का एक वर्ग ‘शिव-शिक्षा-सिद्धांत’ को पुनः अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है। महर्षि अगस्त्य द्वारा शुरू किया गया शिव-शिक्षा का प्रचार-प्रसार धीरे-धीरे सारी दुनिया में फैल गया। किसी-न-किसी रूप में शिव की शिक्षाओं का अनुसरण सारी दुनिया में आज भी किया जा रहा है। वह बात अलग है कि रूप बदल गया है। मौलिक तथ्य को बताने वाला कोई नहीं है। शिव के प्रति अगाध आस्था और श्रद्धा का नमूना हमें स्विट्जरलैंड में स्थित भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला के मुख्य द्वार के पास नटराज की मूर्ति के रूप में मिलता है।

शिवलिंग और शिव मंदिर विश्व में अनेक स्थानों पर मिलते हैं। शिव मंदिर के अवशेष, शिवलिंग के साक्ष्य और अन्य वस्तुएं समय-समय पर मिलती रहती है। हमारे देश में उज्जैन नगरी के महाकालेश्वर मंदिर परिसर के विस्तार के लिए खुदाई के दौरान एक विशाल शिवलिंग और भगवान विष्णु की मूर्ति मिली।

डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक्स ‘मेरे आराध्य शिव’ जिसके लेखक डा. संदीप कुमार शर्मा है। बीए ऑनर्स इतिहास, एम ए इतिहास, शोध प्रबंध के बाद प्रिंट मीडिया में आठ वर्ष संपादक विभाग में विभिन्न पदों पर कार्य किया। इसके बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बतौर स्वतंत्र लेखक निर्माता निर्देशक के रूप में दूरदर्शन एवं अन्य चौनलों पर विभिन्न विधाओं के लगभग 780 एपिसोड प्रसारित हो चुके हैं और आकाशवाणी दिल्ली से लगभग 60 कार्यक्रम प्रसारित हुए हैं। बीस पुस्तकें एवं तीन उपन्यास प्रकाशित हैं। आई आर आर ओ की कार्यकारिणी के सदस्य हैं और ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के आजीवन सदस्य हैं। डा.संदीप कुमार शर्मा का कहना है कि इस पुस्तक के माध्यम से हम अपने पाठकों को भगवान शिव के विभिन्न रूपों से परिचित कराएं। शिव से संबंधित अनेक वैज्ञानिक तथ्यों को स्पष्ट करने का प्रयास किया। भगवान शिव का बहुआयामी व्यक्तित्व एक पुस्तक में समाहित करना संभव नहीं है। अतः भगवान शिव संबंधित अनेक पर्वतों, गुफाएं, देवालय और मंदिरों को एक अलग पुस्तक में स्थान दिया गया है। कल्याणकारी शिव के एक हजार आठ नामों की महिमा के साथ गंगा अवतरण गाथा एवं गंगा के सभी नामों की व्याख्या को एक अलग जिल्द में संकलित किया गया है। यह दोनों पुस्तकें भी पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगी।

‘मेरे आराध्य शिव’ को तैयार करते समय अनेक विद्वानों एवं परिवार के सभी सदस्यों ने सहयोग दिया। मैं सभी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। विशेष रूप से डायमंड बुक्स के स्वामी श्री नरेन्द्र वर्मा जी का हार्दिक अभिनन्दन करना अपना परम कर्तव्य समझता हूं क्योंकि आपने इस पुस्तक को प्रकाशित कर पाठकों तक पहुंचाने का संकल्प लिया है। पुनश्च, हार्दिक आभार। मुझे आशा है मेरा यह प्रयास पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। सुधी पाठकों की प्रतिक्रिया की अभिलाषा में।

पुस्तक का नाम: मेरे आराध्य शिव

लेखक: डॉ. संदीप कुमार शर्मा

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