भूमि पुनर्स्थापन से जलवायु परिवर्तन का घटता स्तर

डॉ. शंकर सुवन सिंह

पर्यावरण जीवन का अभिन्न हिस्सा है। भूमि, पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण घटक है। भूमि की उपयोगिता कृषि के साथ साथ वन्य जीवों के आवास, जल संरक्षण और जलवायु विनियमन में भी होती है। पिछले कुछ दशकों में भूमि का अत्यधिक दोहन और गलत प्रबंधन ने इसे गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया है। भूमि पुनर्स्थापन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हम पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक लाभों को पुनःस्थापित करने का प्रयास करते हैं। तेजी से बढ़ते शहरीकरण से भूमि का अत्यधिक दोहन होता है। जब भूमि का अत्यधिक दोहन होता है तो उसकी उर्वरता घट जाती है। वनों की अंधाधुंध कटाई से मिट्टी का क्षरण होता है। जिससे जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ जाता है। प्रदूषण के कारण भी भूमि की गुणवत्ता प्रभावित होती है। बंजर भूमि का बढ़ना, खाद्य सुरक्षा में कमी और जैव विविधता का नाश, भूमि क्षरण के कारण होता है। तीव्र सूखा, पानी की कमी, भीषण आग, समुद्र का बढ़ता स्तर, बाढ़, ध्रुवीय बर्फ का पिघलना, विनाशकारी तूफान और घटती जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन के परिणामों का ही हिस्सा है। अतएव भूमि क्षरण, सूखा और मरुस्थलीकरण के कारकों, जैसे जलवायु परिवर्तन को भी समाप्त करना होगा। भूमि पुनर्स्थापन एक जटिल प्रक्रिया है। जिन्हे निम्नलिखित कुछ ठोस उपायों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है-

1. वनों की कटाई को रोकना और नए वृक्षारोपण कार्यक्रम शुरू करना  

2. मिट्टी के संरक्षण के लिए टेरेसिंग (सीढ़ीदार खेती), कवर क्रॉपिंग (मिट्टी को ढकने के लिए लगाई गईं फसलें या पौधे) और कम जुताई जैसी तकनीकों का उपयोग,

3. जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन के माध्यम से जल संसाधनों का उचित प्रबंधन,

4. स्थानीय समुदायों को भूमि पुनर्स्थापन के प्रयासों में शामिल करना। भूमि क्षरण एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है जो वैश्विक स्तर पर पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। भूमि क्षरण जलवायु परिवर्तन को भी प्रभावित करता है। जब मिट्टी की गुणवत्ता घटती है, तो उसकी कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता भी कम होती है। इसके परिणामस्वरूप वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है, जो ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन को तेज करता है। भूमि पुनर्स्थापन एक सामूहिक जिम्मेदारी है, जिसमें सरकार, गैर-सरकारी संगठन, और नागरिक समाज की भागीदारी आवश्यक है। हमें यह समझना होगा कि हमारी भूमि की स्थिति हमारे पर्यावरण, हमारी अर्थव्यवस्था, और हमारे समाज के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। सतत कृषि, मृदा संरक्षण, और सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से हम भूमि पुनर्स्थापन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। अतएव हम कह सकते हैं कि भूमि पुनर्स्थापन से जलवायु परिवर्तन का  स्तर घट रहा है।

लेखक

डॉ. शंकर सुवन सिंह

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here