दिल्ली विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजेन्द्र गुप्ता ने मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को एक पत्र लिखकर आगाह किया कि दिल्ली सरकार के अधिकतर फैसले वैधानिक मंजूरी के लिए उपराज्यपाल को नहीं भेजे गये हैं । इस कारण यदि वे न्यायिक जाँच के दायरे में आए तो इन्हंे निरस्त किये जाने की पूरी सम्भावना है । दिल्ली राज्य को विशेष दर्जा संविधान के तहत प्राप्त है । उपराज्यपाल सरकार के प्रमुख हैं तथा सारे प्रशासनिक अधिकार उनमें निहित हैं । इस संवैधानिक व्यवस्था के लिए नियम और उपनियम बनाये गये हैं । परंतु सरकार दुराग्रहवश इनका पालन नहीं कर रही है जिसके भविष्य में दुष्परिणाम आने की आशंका है ।
श्री गुप्ता ने आगे मुख्यमंत्री को लिखा कि दिल्ली सरकार ने निजी स्कूलों में प्रबंधन कोटा समाप्त करने के लिए जो आदेश जारी किये थे, उन्हें अदालत ने मुख्यतः इस कारण निरस्त कर दिया, क्योंकि सरकार ने उपराज्यपाल की अनुमति नहीं ली थी । इसी तरह के अनेक मामले हैं, जहाँ सरकार ने मनमानी कर अपने ढंग से आदेश जारी कर दिये हैं । इन आदेशों की भी परिणति निजी स्कूलों में प्रबंधन कोटा समाप्त करने के दिल्ली सरकार के आदेश जैसी हाने की सम्भावना है ।
श्री गुप्ता ने मुख्यमंत्री को लिखा कि उनकी सरकार जनता को यह कहकर गुमराह कर रही है कि सरकार के आदेशों पर उपराज्यपाल की सहमति जरूरी नहीं है । दिल्ली सरकार ने 50 से अधिक ऐसे आदेश जारी किये हैं, जिनपर उपराज्यपाल की सहमति आवश्यक है, लेकिन सरकार ने अपनी जिद के कारण इन सभी को उपराज्यपाल के यहाँ अनुमति हेतु नहीं भेजा है । यदि इन आदेशों को अदालत में चुनौती दी जाती है तो अदालतें इन आदेशों को भी इस कारण से निरस्त कर देंगी कि उन्हें बिना उपराज्यपाल की सहमति के जारी किया गया है । ऐसा होने पर अनेक जनहित पर कुठाराघात होगा ।
विपक्ष के नेता ने मुख्यमंत्री को कुछ ऐसी महत्वपूर्ण विषयों की सूची दी , जिनको सरकार ने उपराज्यपाल को उनकी अनुमति हेतु नहीं भेजा है । इनमें मुख्य विषय हैं जैसे सीएनजी फिटनेस मामले, दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन और महिला सुरक्षा पर आयोग गठित करना । दिल्ली वक्फ बोर्ड को भ्ंाग करना । श्रमजीवी पत्रकार और समाचार पत्र कर्मचारी (सेवाशर्तें) तथा विविध प्रावधान अधिनियम, 1955। उच्चतम न्यायालय में एडवोकेट आॅन रिकार्ड पर पैनल बनाना और बहस करने हेतु अधिवक्ताओं का पैनल बनाना । दानिक्स अधिकारियों, अभियोग अधिकारियों, दिल्ली जेल के पूर्व अधिकारियों, एक्स कैडर के अधिकारियों का वेतन बढ़ाना । स्टैम्प ड्यूटी बढ़ाने हेतु कृषि भूमि की न्यूनतम दरों में संशोधन करना । निजी मोटर कंपनियों और फर्मों के नाम पर पंजीकृत वाहनों पर टैक्स की दरों में बढ़ोतरी करना ।
इसके अलावा केन्द्रीय बिक्री कर (दिल्ली) नियम, 2005 में संशोधन । होटल और अतिथि गृहों के लाइसेंस शुल्कों में वृद्धि के लिए दिल्ली आबकारी अधिनियम, 2010 में संशोधन । दिल्ली में बिजली कंपनियों के बोर्ड में निदेशक के रूप में दिल्ली राज्य के प्रतिनिधि को नामित करना । आईएएस कैडर पोस्ट पर अन्य संवर्ग के अधिकारियों की पदस्थापना । भ्रष्टाचार निरोधक शाखा दिल्ली राज्य में अन्य राज्यों से पुलिस अधिकारियों को शामिल करना ।
श्री गुप्ता ने कहा कि केजरीवाल सरकार भारतीय संविधान में वर्णित प्रावधानों तथा बिल को सदन में प्रस्तुत करते समय दिल्ली विधानसभा में प्रक्रिया तथा कार्यसंचालन संबंधी नियम, 1997 का पालन नहीं कर रही है । परिणामस्वरूप केजरीवाल सरकार द्वारा विधानसभा में पास किये गये निम्नलिखित तीन बिलों सहित कई बिलों को आज तक मंजूरी नहीं दी गयी है । दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (संशोधन) बिल, 2015,दिल्ली नेताजी सुभाष औद्योगिक विश्वविद्यालय बिल, 2015,दिल्ली विधानसभा सदस्य (रिमूवल एण्ड डिसक्वालिफिकेशन) (संशोधन) बिल, 2015 है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि दिल्ली सरकार ने कई महत्वपूर्ण विधेयक उपराज्यपाल की पूर्व अनुमति के बिना ही सदन में पेश किया, जैसा कि दिल्ली सरकार के एक्ट के अनुच्छेद -45 में उल्लिखित है । दिल्ली स्कूल लेखों का सत्यापन और अतिरिक्त फीस अधिनियम (संशोधन) दिल्ली स्कूल शिक्षा बिल, श्रमजीवी पत्रकार प्रावधान अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी बिल, दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन), 2015 । विजेन्द्र गुप्ता ने मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से कहा है कि वे उपरोक्त तथा ऐसे अन्य विधेयकों तथा आदेशों को कानून का दर्जा देने के लिए संविधानप्रदत्त विधियों का सहारा लें और तदनुसार कार्यवाही करें । यही जनहित में आवश्यक है ।