मैंने अपने भारत को मरते देखा है
सिसकते देखा है| मैंने अपने भारत को मरते………
अबलाओ की अस्मिता को
विज्ञापनों की जलधारा में बहते देखा है
मैंने अपने भारत को मरते………
अपनी संस्कृति को अधर्म की आंधियो के थपेड़ों से
टकराकर उखड़ते देखा है
मैंने अपने भारत को मरते………
धर्म के स्तंभों को
विधर्मी शक्तियों द्वारा ढहते देखा है
मैंने अपने भारत को मरते………
श्री कृष्ण जी की गौ माताओं को गर्म पानी से
तडपा तडपा कर सरेआम कटते देखा है
मैंने अपने भारत को मरते………
विकास रूपी हौआ को अपने जाल में फंसा कर
समूचे भारत को निगलते देखा है
मैंने अपने भारत को मरते………
नन्दों यों तो बहुत कुछ देखा है
निर्दोष पूजनीय संतो को
जेल की सलाखों में तडपते देखा है
मैंने अपने भारत को मरते………
नेताओ की राजनीती से
भोली – भाली जनता को दंगो फसादों में
उजड़ते देखा है
मैंने अपने भारत को मरते………
इस विकास के युग में क्या क्या नहीं बदला
हमने अपने अखंडा भारत को
इंडिया में बदलते देखा है
मैंने अपने भारत को मरते………