पृथ्वी, वायु, भूमि तथा जल हमारे बच्चों की धरोहर है

0
17

विश्व पर्यारण दिवस पर गांधीजी का संदेश

प्रोफेसर मनोज कुमार 

पर्यावरण प्रदूषण वैश्विक संकट बनकर हमारे सामने खड़ा है.  ज्यों-ज्यों हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं, त्यों-त्यों पर्यावरण प्रदूषण और भी गंभीर होता जा रहा है। हमारी भोगविलासिता और लापरवाही के चलते पर्यावरण संकट में है। यह संकट विश्व के साथ भारत पर भी मंडरा रहा है। प्रति वर्ष विकराल गर्मी इस बात का संकेत है कि पृथ्वी अब हमारा बोझ सहन नहीं कर पा रही है और हम वैकल्पिक उपायों की ओर बढ़ रहे हैं जो पर्यावरण को बचाने में अक्षम है।  पर्यावरण संकट को संयुक्त राष्ट्र संघ ने पांच दशक से पहले चिन्ह लिया था और विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का फैसला किया। 1972 मेंं संयुक्त राष्ट्र के इस फैसले बरक्स पूरी दुनिया में पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का फैसला लिया था लेकिन पर्यावरण दिवस सबसे पहले स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में मनाया गया। वर्ष 1972 में स्वीडन के शहर स्टाकहोम में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व का पहला अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें 119 देशों ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यू.एन.ई.पी) का प्रारंभ ‘एक धरती’ के सिद्धांत को लेकर किया और एक ‘पर्यावरण संरक्षण का घोषणा पत्र’ तैयार किया जो ‘स्टाकहोम घोषणा’ के नाम से जाना जाता है।

पर्यावरण शब्द परि+आवरण से मिलकर बना है। ‘परि’ का आशय चारों ओर तथा ‘आवरण’ का अर्थ परिवेश से है। चूंकि पर्यावरण में वायु जल भूमि पर पौधे जीव जंतु मानव और इनकी गतिविधियों का समावेश होता है। इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण का ध्यान रखना हमारा नैतिक दायित्व बनता है।

महात्मा गांधी का मानना था कि पृथ्वी, वायु, भूमि तथा जल हमारे पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्तियां नहीं हैं। वे हमारे बच्चों की धरोहरें हैं। वे जैसी हमें मिली हैं वैसी ही उन्हें भावी पीढिय़ों को सौंपना होगा। वन्य जीवन, वनों में कम हो रहा है किन्तु वह शहरों में बढ़ रहा है। गांधीजी कहते थे ‘हमारी आवश्यकता की पूर्ति के लिए इस पृथ्वी पर पर्याप्त संसाधन हैं मगर हमारे लालच के लिए नहीं हैं।’

वर्तमान समय में पानी, हवा, रेत मिट्टी आदि के साथ-साथ पेड़ पौधे, खेती और जीव जंतु आदि सभी पर्यावरण प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं। कारखाने से निकलने वाले अपशिष्टों, परमाणु संयंत्रों से बढऩे वाली रेडियोधर्मिता, मल के निकास आदि कई सारे कारणों से लगातार पर्यावरण प्रदूषित होता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रदूषण रोकने के लिए अनेक उपाय लगातार कर रहा है। औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण हरे भरे खेत, भूमि का जलवायु, वन्य जीव का स्वास्थ्य, भूस्खलन आदि प्रभावित हो रहे हैं। इसी को मद्देनजर रखते हुए बड़े उद्योगों को प्रदूषण रोकने के उपाय अपनाने के लिए कहा जा रहा है सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण कार्यक्रम में ध्यान दिया जा रहा है यह सब प्रयास पर्यावरण को संतुलित और सुरक्षित रखने के लिए नियंत्रण किए जा रहे हैं इसीलिए 5 जून को हर वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भूमि जल एवं वायु आदि तत्व में विकृति आने से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है तब पर्यावरण लगातार प्रदूषित होने लगता है। इसी को कम करने या रोकने की प्रक्रिया को पर्यावरण संरक्षण कहते हैं। धरती पर लगातार जनसंख्या बढऩे तथा पर्यावरण के प्रति जागरूकता ना होने के कारण पर्यावरण संरक्षण की समस्या लगातार उत्पन्न हो रही है। पर्यावरण संरक्षण का विश्व के सभी नागरिकों तथा प्राकृतिक परिवेश से गहरा संबंध है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर सन 1992 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा ब्राजील में विश्व के 174 देशों का पृथ्वी सम्मेलन आयोजित किया गया था। फिर सन 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित किया गया जिसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण था।

पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारणों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। जनजीवन की सुरक्षा के लिए पर्यावरण को सुरक्षित और संरक्षित रखने की जरूरत है। आधुनिकता की ओर बढ़ रहे विश्व में विकास की राह में कई ऐसी चीजों का उपयोग शुरू कर दिया है, जो धरती और पर्यावरण के लिए घातक है। इंसान और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं है। लेकिन इसी प्रकृति को इंसान नुकसान पहुंचा रहा है। लगातार पर्यावरण दूषित हो रहा है, जो जनजीवन को प्रभावित करने के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं की भी वजह बन रहा है।

यह राहत की बात है कि एक तरफ पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है तो उसे बचाने के प्रयास भी सतत रूप से चल रहा है। लगभग पाँच दशकों से, विश्व पर्यावरण दिवस जागरूकता बढ़ा रहा है, कार्यवाही का समर्थन कर रहा है और पर्यावरण के लिए बदलाव ला रहा है। लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष थीम के साथ काम किया जाता है जो दुनिया को एक संदेश देता है।  2005 के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘ग्रीन सिटीज’ थी और नारा था ‘प्लांट फॉर द प्लैनेट।’ 2006 का विषय था मरुस्थल और मरुस्थलीकरण और नारा था ‘शुष्क भूमि को मरुस्थल न बनाएं।’ नारे ने शुष्क भूमि की रक्षा के महत्व पर बल दिया। 

2007 के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय था ‘मेल्टिंग आइस – ए हॉट टॉपिक।’ अंतर्राष्ट्रीय धु्रवीय वर्ष के दौरान, विश्व पर्यावरण दिवस 2007 ने उन प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया जो जलवायु परिवर्तन के कारण धु्रवीय पारिस्थितिक तंत्र और समुदायों पर व दुनिया के अन्य बर्फीले और बर्फ से ढके क्षेत्रों पर हो रहे हैं और जिनका वैश्विक प्रभाव पड़ रहा है। मिस्र ने 2007 विश्व पर्यावरण दिवस के लिए डाक टिकट जारी किया।

इन प्रयासों के बाद भी पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए या उसमें अपेक्षित सुधार लाने के लिए विशेष प्रयास वैश्विक स्तर पर किए जाने की आवश्यकता प्रतीत होती है। महात्मा गांधी हमेशा से पर्यावरण प्रदूषण की चिंता करते रहे हैं. अपने लेखों और भाषणों में वे इस बात की ताकीद करते रहे हैं कि यदि पर्यावरण संरक्षित नहीं किया गया तो जीवन समाप्त हो जाएगा।  इसलिए उन्हें विश्व का पहला पर्यावरणवादी कहा जाए तो उचित ही होगा। गांधी जी ने हिमालय के महत्व को भी उसी समय रेखांकित कर प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ न करने की नसीहत दे दी थी। भारत में भी पर्यावरण की रक्षा के लिए चिपको जैसे प्रमुख आंदोलनों के प्रणेता चंडी प्रसाद भट्ट और उसे व्यापक प्रचार देने वाले सुंदर लाल बहुगुणा और बाबा आमटे तथा मेधा पाटकर ने गांधी से ही प्रेरणा ली।

‘हिन्द स्वराज’ में प्रकट की थी पर्यावरण की चिंता

गांधी जी ने आधुनिक पर्यावरणविदों से बहुत पहले दुनिया को बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण की समस्याओं के बारे में आगाह किया था। गांधी जी ने कल्पना की थी कि मशीनीकरण से न केवल औद्योगीकरण, बड़े पैमाने पर शहरीकरण, बेरोजगारी होगी, बल्कि पर्यावरण का विनाश भी होगा। एक सदी पूर्व 1909 में लिखी गई उनकी पुस्तक, ‘‘हिंद स्वराज’’ ने पर्यावरण के विनाश और ग्रह के लिए खतरे के रूप में दुनिया के सामने आने वाले खतरों की चेतावनी दी थी। ऐतिहासिक रिकॉर्ड के रूप में, गांधी जी पर्यावरण प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य के लिए इसके परिणामों से पूरी तरह अवगत थे। वह विशेष रूप से उद्योग में काम करने की भयावह परिस्थितियों के बारे में चिंतित थे, जिसमें श्रमिकों को दूषित, जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर किया जाता था। उन्होंने 5 मई, 1906 को इंडियन ओपिनियन में उन चिंताओं को व्यक्त किया और कहा था कि ‘‘आजकल, खुली हवा की आवश्यकता के बारे में प्रबुद्ध लोगों में सराहना बढ़ रही है।’’ गांधी जी का मानना था कि पृथ्वी, वायु, भूमि तथा जल हमारे पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्तियां नहीं हैं। वे हमारे बच्चों की धरोहरें हैं। वे जैसी हमें मिली हैं वैसी ही उन्हें भावी पीढिय़ों को सौंपना होगा।

वन्य जीवन, वनों में कम हो रहा है किन्तु वह शहरों में बढ़ रहा है। 1909 की शुरुआत में ही उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘हिंद स्वराज’’ में मानव जाति को अप्रतिबंधित उद्योगवाद और भौतिकवाद के प्रति आगाह किया था। वह नहीं चाहते थे कि भारत इस संबंध में पश्चिम का अनुसरण करे और चेतावनी दी कि यदि भारत अपनी विशाल आबादी के साथ पश्चिम की नकल करने की कोशिश करता है तो पृथ्वी के संसाधन पर्याप्त नहीं होंगे। उन्होंने 1909 में भी तर्क दिया कि औद्योगीकरण और मशीनों का लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हालांकि वह मशीनों के विरोध में नहीं थे। उन्होंने निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर मशीनरी के उपयोग का विरोध किया। उन्होंने नदियों और अन्य जल निकायों को प्रदूषित करने के लिए लोगों की आलोचना की। उन्होंने धुएं और शोर से हवा को प्रदूषित करने के लिए मिलों और कारखानों की आलोचना की। 

Previous articleपर्यावरण के बड़े खतरों के लिये कोशिशें भी बड़ी हो
Next articleचिंता का सबब बनता पर्यावरण का डगमगाता संतुलन
मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here