रेगिस्तान के जहाज के उन्नयन और संरक्षण की आवश्यकता !

रेगिस्तान के जहाज(द शिप ऑफ डेजर्ट) के नाम से जाना जाने वाला, राजस्थान का राज्य पशु(ऊंटों के संरक्षण के लिए राजस्थान सरकार ने इसे साल 2014 में राज्य पशु का दर्जा दिया था) कहलाने वाला तथा राजस्थान की आन-बान और शान समझा वाला, स्तनधारी पशुओं में जिराफ़ के बाद दूसरे नंबर पर आने वाला एवं राजस्थान की जीवनरेखा समझा जाने वाला पशु ऊंट का अस्तित्व भी दिन-ब-दिन खतरे में पड़ता जा रहा है। यह बात कहने में कोई संदेह नहीं होगा कि राजस्थान की पहचान माने वाले ऊंट भविष्य में हो सकता है कि सिर्फ किताबों और चित्रों, इंटरनेट व कल्पनाओं में ही आने वाली पीढ़ियों को नजर आएं।  जानकारी देना चाहूंगा कि थार के मरुस्थल की पाकिस्तान से लगती पश्चिमी सीमा में बॉर्डर गार्डिंग ऊंटों के जरिए होती है,लेकिन यह बहुत ही संवेदनशील है कि आज रेगिस्तानी जहाजों की संख्या लगातार घट रही है। सभी को यह विदित ही है कि राजस्थान में ऊंट की अपनी विशेष उपयोगिता व पहचान रही है और राजस्थान में पशुपालन में इसका विशेष स्थान रहा है। पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में ऊंट आवागमन ही नहीं बल्कि खेती और दूध और आपूर्ति का भी प्रमुख साधन रहा है। राजस्थान ही नहीं संपूर्ण देश में आज ऊंटों की संख्या तेजी से घट रही है। जानकारी के अनुसार गत 47 सालों में साढ़े आठ लाख ऊंट कम हुए हैं। यह बहुत ही संवेदनशील और गंभीर है कि देश के कई राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में तो ऊंटों की संख्या शून्य हो गई है। इसमें आंध्र प्रदेश, झारखंड, सिक्किम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, चंडीगढ़, अंडमान, लक्ष्यदीप, दादरा नगर हवेली और दमन व दीव शामिल है।नहरी तंत्र के विस्तार से चारागाहों में कमी होना, ऊंटों के परम्परागत चारा-नीरा, फूस और फळगटी कम होने से इनकी कीमत का बढ़ना,कृषि का आधुनिकीकरण व मशीनीकरण होने से ऊंटों की उपयोगिता कम होना, परिवहन में वाहनों का इस्तेमाल करना, बदलते परिवेश के कारण तो कभी ऊंटों में त्वचा संबंधी मेंज बीमारी व अन्य बीमारियों के कारण, ऊंटों की तस्करी आदि के कारण भी ऊंटों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। बढ़ते विकास के कारण एवं चारे-पानी की कमी के कारण पशुपालकों का ऊंट पालन के प्रति मोह भंग होने लगा है। आज सीमा क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछ चुका है, इसके कारण ऊंटों की इतनी आवश्यकता नहीं रही और पशुपालक इसे पालने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे और इन्हें खुले में छोड़ देते हैं।सीमा क्षेत्र में हालांकि सड़कों का जाल बिछा हुआ है। इसके कारण ऊंटों की इतनी आवश्यकता नहीं है,सच तो यह है कि आज समय के साथ ऊंटों की उपयोगिता कम होने के कारण भी पशुपालकों ने ऊंट से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। पर्यटन के क्षेत्र में भी आज ऊंटों का इस्तेमाल उतना नहीं किया जाता है, जितना कि पहले किया जाता था, क्यों कि पर्यटन में भी आजकल वाहनों का इस्तेमाल होने लगा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज ऊंटों की संख्या कम होने का सबसे बड़ा कारण इसका परिवहन व खेती में उपयोग नहीं के बराबर या बहुत ही होना है। पर्यटन के क्षेत्र में जैसलमेर, जोधपुर के अलावा पश्चिमी राजस्थान में कहीं ऊंट का उपयोग पर्यटन क्षेत्र में आज नहीं हो रहा है। आज कैमल सफारी के आयोजनों में पहले की तुलना में काफी कमी आई है। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में वर्ष 2012 में ऊंटों की संख्या 3.26 लाख थी, जो घट कर 2.13 लाख रह गई है। 

राजस्थान के अलावा गुजरात, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी ऊंट पाए जाते हैंं, लेकिन सभी जगह ऊंटोंं की संख्या में गिरावट आई है। यह दुखद है कि राज्य पशु ऊंट के वध पर निषेध के बावजूद भी इसकी तस्करी जारी है। चोरी छिपे आज ऊंटों को (तस्करी कर) आज बूचड़खानों में ले जाया जा रहा है।

विगत दशकों में राज्य पशु ऊंट की घटती संख्या चिंता का विषय बनी हुई है। वास्तव में,इसके सामाजिक व आर्थिक पक्ष भी है और इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव उन सामाजिक समूहों पर पड़ा है जिनकी आजीविका का आधार पशुपालन व पशुचारण रहा है।आज से लगभग चार दशक पहले देश में 11 लाख से अधिक ऊंट (नर व मादा) थे, जो वर्ष 2019 में घटकर ढाई लाख रह गए। जानकारी देना चाहूंगा कि 20 वीं पशु गणना के अनुसार 1.70 लाख ऊंटनी की तुलना में केवल 80 हजार ऊंट थे। संवेदनशील है कि पशुपालन विभाग द्वारा पशुगणना 2012 की तुलना 2019 में ऊंटों की संख्या में 34.69 फीसदी कमी हुई है। यहां चौंकाने वाली बात यह है कि देश मेंं 2019 की गणना के अनुसार पशुधन की संख्या मेंं 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यहां यह बात गौर करने लायक है कि राजस्थान में पशुधन में 1.66 फीसदी की गिरावट आई है और इनमें ऊंट भी हैं। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1977 में 11 लाख, 1982 में 10 लाख 80 हजार, 1987 में 10 लाख, 1992 में 10 लाख 30 हजार, 1997 में 9 लाख 10 हजार, 2003 में 6 लाख 30 हजार, 2007 में 5 लाख 20 हजार, 2012 में चार लाख, 2019 में की 2 लाख 50 हजार रह गए हैं।

यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि वर्तमान में देश में करीब ढाई लाख ऊंट हैं। इनमें से 2.12 लाख ऊंट राजस्थान में है, जो कुल ऊंटों का 85% है। यह भी विदित हो कि वर्ष 1983 में राज्य में 7.56 लाख ऊंट थे,जो लगातार घटते चले जा रहे हैं। एक अन्य आंकड़े की बात करें तो इसके अनुसार 1951 में कुल पशुधन के 1.34 प्रतिशत ऊंट थे, जो 2019 में 0.37 प्रतिशत रह गए है। हालांकि इसी बीच हाल ही में एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के हवाले से ऊंटों के मामले में एक सुखद व अच्छी यह खबर आई है कि राजस्थान के मेवाड़-वागड़ में 2019 की गणना में  1131 ऊंट बढ़े हैं, जबकि सर्वाधिक 996 ऊंट डूंगरपुर में बढ़े हैं। एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक में प्रकाशित एक खबर के अनुसार ‘ वर्ष 1977 से वर्ष 2019 तक के आंकड़ों का आकलन करने पर पता चलता है कि करीब साढ़े आठ लाख ऊंट देश में कम हो गए हैं। यानि ऊंट घटने का प्रतिवर्ष का औसत 50 प्रतिशत से ज्यादा है। यह स्थिति तब है, जबकि ऊंट किसी बड़ी महामारी के शिकार नहीं हुए हैं। जानकारों के अनुसार आंध्रप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र व केरला में गिनती भर के ऊंट हैं।’

 हाल ही में आई इस खबर में बताया गया है कि हालांकि राज्य के उदयपुर जिले में इनकी संख्या घटी है, लेकिन संभाग के अन्य जिलों में यह संख्या बढ़ रही है। बहरहाल, राजस्थान में ऊंटों की संख्या को देखते हुए ऊंट पालन पर और अधिक ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, क्यों कि यदि समय रहते ऊंट पालन पर ध्यान नहीं दिया गया तो प्रदेश के पर्यटन के साथ ही देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाने वाले ऊंट गायब हो जाएंगे। जानकारी देना चाहूंगा कि ऊंट न केवल कृषि कार्यों में, सुरक्षा में तथा पर्यटन में अपनी भूमिका निभाता आया है बल्कि ऊंट का राजस्थान की जैविक विविधता में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।  दूर दराज के रेगिस्तानी इलाकों में आज भी ऊंट हमारी आजीविका का मुख्य साधन बना हुआ हैं। ऊंटनी का दूध भी औषधीपरक होता है और यह वैज्ञानिक अनुसंधान में भी प्रमाणित हो चुका है। जानकारी देना चाहूंगा कि ऊंटनी के दूध से बने उत्पाद स्वास्थ्यवर्धक मानें जाते हैं। वर्तमान में ऊंटनी के दूध से बिस्किट, चॉकलेट, आइसक्रीम और साबुन तक भी बनाया जा रहा हैं। इस दूध में विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन समेत व अन्य खनिज लवण व तत्व होते हैं, जिससे शरीर में इम्यूनिटी बढ़ने के साथ हड्डियां भी मजबूत होती है। वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि ऊंटनी का दूध कैंसर, डायबिटीज, टीबी, हृदय रोग जैसी अनेक बीमारियों के खतरे को भी कम करता है। यहां तक कि ऊंटनी का दूध खून की कमी दूर करने के साथ मेमोरी पावर भी बढ़ाता है। इसमें हाइड्रोकसील अम्ल पाया जाता है, जो त्वचा को निखारने में मदद करता है‌। ऊंटनी का दूध पौष्टिक एवं लाभदायक होने से इसका प्रचलन बढ़ रहा है। ऊंट के दूध को लेकर जागरूकता व संस्थागत तरीके से वितरण व्यवस्था की आवश्यकता है। इससे ऊंट पालन के प्रति पशुपालकों का रुझान फिर बढ़ने लगेगा। दूध ही नहीं , ऊंट के बालों व खाल से आज अनेक प्रोडक्ट बनाए जाते हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि  राष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केंद्र, बीकानेर में ऊंट के बालों से बने जैकेट, चप्पल और पर्स खरीदे जा सकते हैं। ऊंट के बालों से साउंड प्रूफ और अग्निविरोधी सीट व योगा मैट भी तैयार की जा रही हैं। आज के इस आधुनिक युग में ऊंट पालकों को ऊंट पालन की समुचित और वैज्ञानिक जानकारी देने के साथ ही उनको प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इसके लिए राज्य तथा केन्द्र सरकार को भी योजनाएं शुरू करने की जरूरत है। जानकारी देना चाहूंगा कि आज भी राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर, सिरोही, जालोर में ऊंट ठीक-ठाक संख्या में हैं। आज ऊंटों के संरक्षण के लिए चरागाह विकास, ऊंट संवर्धन केंद्र, डेयरी या कोई बड़ा प्रोजेक्ट लगाने की जरूरत है और ऊंट पालन करने वाले किसानों को लगातार प्रोत्साहित करने की जरूरत है। बाड़मेर, पुष्कर, नागौर, बीकानेर और जोधपुर में लगने वाले पशु मेलों और उत्सवों के आयोजनों पर भी सरकार व प्रशासन को विशेष ध्यान देना चाहिए और इनको प्रोत्साहित करना चाहिए। आज पशु मेलों की संख्या लगातार कम होती चली जा रही है। यहां इस बात का पता लगाया जाना भी अति आवश्यक है कि आखिर नागौर का बाबा रामदेव पशु मेला व मेड़ता के बलदेव पशु मेले में ऊंटों की संख्या तेजी से क्यों कम हो रही है ? आज बहुत से पशु मेले धीरे धीरे या तो कम हो गये हैं अथवा बंद हो गये हैं और यह हालात तब हैं जब राज्य सरकार वर्ष 2014 में ऊंट को राज्य पशु घोषित कर चुकी है। जानकारी देना चाहूंगा कि प्रदेश में  वर्ष 2015 में ऊंटों की संख्या 3.5 लाख थी जो वर्ष 2019 में 2.13 लाख रह गई। ऊंटों की संख्या में वृद्धि 1951 से 1992 तक हुई। उसके बाद इसमें गिरावट शुरू हो गई। ऊंटों की संख्या में गिरावट को देखते हुए 16 सितम्बर 2014 को इसे राजकीय पशु घोषित किया गया था। ऊंट संरक्षण की दिशा में उठाए गए कदमों के तहत 2015 में ऊंटों के वध को रोकने तथा राज्य से बाहर निकासी या अस्थाई प्रव्रजन पर रोक लगाने के लिए राजस्थान ऊंट(वध का प्रतिषेध और अस्थाई प्रव्रजन या निर्यात विनिमय) अधिनियम भी लागू किया गया था। ऐसे में अब ऊंट और उसका संवर्धन भी सरकार के साथ हम सभी की अहम् जिम्मेदारी है। हालांकि सरकार ऊंटों के संरक्षण के लिए काम कर रही है और जानकारी देना चाहूंगा कि पिछली सरकार ने ऊंट संरक्षण नीति घोषित की थी। ऊंटों का प्रजनन बढ़ाने के उद्देश्य से बनाई गई इस नीति के तहत पशु पालकों को नकद राशि देकर प्रोत्साहित करने की बात कही गई थी, ताकि राज्य में ऊंटों की संख्या में जो गिरावट आई है उसकी कुछ हद तक भरपाई हो सके, लेकिन अब देखना यह है कि वर्तमान सरकार इस पर किस तरह के कदम उठाती है और ऊंटों के संरक्षण के लिए और क्या करती है ? यह विडंबना ही है कि ऊंटों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार की ओर से ‘ऊंट संरक्षण और विकास नीति’ का ऐलान किए जाने के बावजूद ऊंटों की दुर्दशा बदस्तूर जारी है। बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि 

22 जून को राष्ट्रीय ऊंट दिवस मनाया जाता है, आमजन को इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय ऊंट महोत्सव पर भी विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। ऊंटों के संरक्षण के लिए देश में स्थान स्थान पर सिरोही ऊंट संरक्षण केंद्र की तर्ज पर ऊंट संरक्षण केंद्र खोले जाने चाहिए। ऊंट प्रजनन केंद्र भी खोलने की जरूरत है। टोडियो के जन्म पर किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन राशि दी जानी चाहिए। ऊंटों के संरक्षण के लिए सरकार को विशेष कार्य योजना बनानी चाहिए। ऊंटों के इलाज एवं उनकी सही व समय पर देखभाल के लिए अस्पतालों, उप-केंद्रों और मोबाइल इकाइयों के माध्यम से मुफ्त दवा वितरण के साथ मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल और मुफ्त स्वास्थ्य जांच प्रदान की जानी चाहिए।ऊंट पालक का पंजीकरण, पशु चिकित्सक द्वारा ऊंटनी व टोडियो की टैगिंग और जिला स्तरीय वित्तीय स्वीकृति का प्रावधान ऊंटों के संरक्षण की दिशा में एक शानदार कदम साबित हो सकता है। अंत में यही कहूंगा कि ऊंट राजस्थान का राज्य पशु है इसके उन्नयन एवं संरक्षण की महत्ती आवश्यकता है।

सुनील कुमार महला

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here