दूध की गुणवत्ता में कमी दूषित दूध का द्योतक है

डॉ. शंकर सुवन सिंह

दूध पोषकता का पर्याय है। दूध दुनिया को पोषण देता है। आहार-तत्व सम्बन्धी विज्ञान ही पोषण है।   पोषण की प्रक्रिया में जीव पोषक तत्वों का उपयोग करते हैं। जीवन जीने के लिए  भोजन (आहार)  की आवश्यकता होती है। आहार/भोजन  शुद्ध, पोषकता से भरपूर और ताजा होना चाहिए। आहार या भोजन के मुख्य उद्देश्य हैं – 1. शरीर को ऊर्जा या शक्ति प्रदान करना। 2.  शरीर में कोशिकाओं या ऊतकों का पुनर्निर्माण करना। 3. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना। स्वास्थ्य का आहार से घनिष्ठ सम्बन्ध है। पोषण तत्व हमारे भोजन में उचित मात्रा में विद्यमान न हों, तो शरीर बीमार हो जाएगा। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज-लवण व पानी प्रमुख पोषण तत्व हैं। पोषण एक प्रक्रिया है जो शरीर को पोषक तत्व प्रदान करते हैं। पोषण, पोषक तत्वों के सही मिश्रण को संदर्भित करता है। अच्छा पोषण निरोगी काया की निशानी है। दूध एक ऐसा आहार है जिसमे सभी पोषक तत्व संतुलित मात्रा में पाए जाते हैं। फ्रैंच वैज्ञानिक लेवोइजर को पोषण का जनक माना जाता है। उन्होंने 1770 ई. में चयापचय की खोज की। उन्होंने प्रदर्शित किया कि भोजन से ऊर्जा उसके ऑक्सीकरण के कारण प्राप्त होती है। दूध शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है। दूध में एमिनो एसिड एवं फैटी एसिड मौजूद होते हैं। दूध संपूर्ण आहार है। दूध के बिना जीवन अधूरा है। दूध एक अपारदर्शी सफेद द्रव है जो मादाओं के दुग्ध ग्रन्थियों द्वारा बनाया जाता  है। नवजात शिशु तब तक दूध पर निर्भर रहता है जब तक वह अन्य पदार्थों का सेवन करने में अक्षम होता है। दूध में मौजूद संघटक हैं – पानी, ठोस पदार्थ, वसा, लैक्टोज, प्रोटीन, खनिज, वसा विहिन ठोस। अगर हम दूध में मौजूद पानी की बात करें तो सबसे ज्यादा पानी गधी के दूध में 91.5% होता है, घोड़ी में 90.1%,  मनुष्य में 87.4%, गाय में 87.2%, ऊंटनी में 86.5%, बकरी में 86.9% होता है। दूध में कैल्शियम, मैग्नीशियम, ज़िंक, फास्फोरस, आयोडीन, आयरन, पोटैशियम, फोलेट्स, विटामिन-ए, विटामिन- डी, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी-12, प्रोटीन आदि मौजूद होते हैं। गाय के दूध में प्रति ग्राम 3.14 मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। गाय का दूध पतला होता है। जो शरीर मे आसानी से पच जाता है। एक भी खाद्य पदार्थ सभी की आपूर्ति नहीं करता है,लेकिन दूध लगभग सभी की आपूर्ति करता है।  वर्ष 2024 में विश्व दुग्ध दिवस का प्रसंग /थीम है – दुनिया को पोषण देने के लिए  गुणवत्तापूर्ण पोषण प्रदान करने में डेरी द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका। इसी उद्देश्य या प्रसंग को लेकर विश्व दुग्ध दिवस हर्सोल्लास से मनाया गया। हिन्दू धर्म में गाय को पूजनीय माना गया है। गाय की पूजा होती है दूध स्वयं में सम्पूर्ण आहार है। गाय के दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर के द्वारा पंचगव्य का निर्माण किया जाता है। गाय से जुड़े इन पांच चीजों का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। पंचगव्य से निर्मित औषधियों के सेवन से रोग दूर होते हैं। पंचगव्य से बने उत्पाद पूर्णतः रसायनमुक्त होने के कारण आरोग्यदायी होते हैं। गौ माता के शरीर से निरंतर सत्वकणों का प्रक्षेपण होता रहता है; इसलिए पंचगव्य से निर्मित औषधियां और उत्पाद सात्विक होते हैं। उनके प्रयोग से सात्विकता मिलती है। सात्विकता से सद्गुणों का विकास होता है। सद्बुद्धि आती है। यह तनाव को कम करता है और याददाश्त बढ़ता है। दूध देवत्व का कारक है। अतएव इसे अमृत कहा गया। गाय के स्पर्श मात्र से तनाव और शरीर में खून के प्रवाह में आराम मिलता है। पंचभूत  के पांच तत्वों अग्नि, वायु, आकाश, जल और पृथ्वी, से मिलकर शरीर का निर्माण हुआ। पंचभूत  से शरीर बना और शरीर को सुरक्षित रखने के लिए पंचगव्य बना। पंचगव्य रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है। पंचगव्य और पंचभूत परस्पर एक दूसरे के समानुपाती हैं। अर्थात ये दोनों एक दूसरे का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूध , दही, घी, गोमूत्र और गोबर  (पंचगव्य के अवयव) क्रमशः अग्नि, वायु, आकाश, जल और पृथ्वी (पंचभूत के अवयव) का प्रतिनिधित्व करते हैं। अग्नि , वायु, आकाश, जल और पृथ्वी  क्रमशः पित्त, वात, शून्य, कफ और मिट्टी(लेप) को दर्शाते हैं। शून्य तनाव नाशक है। शून्य, शांति  का प्रतीक है।  कहने का तात्पर्य यह है कि दूध शरीर में पित्त का नाश करती है। दही, वायु विकार को दूर करती है। घी तनाव का नाश करती है। जब शरीर में वात और पित्त का संतुलन रहता है तब शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। स्वस्थ्य शरीर तनाव मुक्त होने का परिचायक है। गोमूत्र, जल को दर्शाता है। जल कफ का प्रतीक है। अतएव गोमूत्र कफ नाशक है। यह शरीर में कफ का संतुलन बनाए रखती है। जिससे श्वसन प्रक्रिया स्वस्थ्य  रहती है। गोमूत्र शरीर में जहर को ख़त्म करता है। गोबर, पृथ्वी को दर्शाता है। पृथ्वी, मिट्टी(लेप) का प्रतीक है।  गोबर का लेप घर में किया जाए तो घर में सकारात्मकता बढ़ती है। पुराने समय में घर की दहलीज पर गोबर का लेप किया जाता था। गोबर , मिट्टी की शक्ति को दोगुना कर देता है। आज कल मिट्टी/गोबर  के लेप का चलन शरीर को स्वस्थ्य रखने में किया जाता है। मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग बढ़ा है। गोबर के कंडो का प्रयोग बढ़ा है। गोबर में एंटीबैक्टीरियल के गुण हैं। मिट्टी के घड़ों का प्रयोग पानी पीने के लिए सर्वोत्तम है। ये पंचगव्य हमारे शरीर को पोषण प्रदान करते हैं। दूध से बने व्युत्पन्न उत्पाद जैसे घी, दही, छाछ, पनीर, लस्सी आदि डेरी के महत्व को बढ़ाते हैं। गाय के दूध से बने व्युत्पन्न पदार्थ पौष्टिकता के प्रतीक हैं। जब गौशाला से दूध डेरी उद्योगों में जाता है तो वहाँ दूध से बनने वाले व्युत्पन्न उत्पादों की संख्या बढ़ जाती है। डेरी उद्योगों से दूध प्रसंस्करित होकर लम्बे समय तक के लिए  बाजार में उतरा जाता है। जिससे की प्रोसेस्ड मिल्क की शेल्फ लाइफ बढ़ जाती है। इससे दूध ख़राब होने से बच जाता है। गौशालाऐं न हों तो डेरी उद्योगों का होना असंभव है। दुग्ध उद्योग, गौशालाओं से चल रहे हैं। गौशालाओं के रख रखाव की उचित व्यवस्था और उनकी संख्या बढ़ाए जाने को लेकर प्रदेश की सरकारें कई योजनाएं ला चुकी हैं। इन योजनाओं के द्वारा लोन देने की उचित व्यवस्था की गई है। इन योजनाओं के द्वारा लोगों को स्वरोजगार के मौके मिलेंगे। स्वरोजगार, स्वावलम्बन का प्रतीक है। स्वावलम्बन, स्वाभिमान को दर्शाता है। स्वाभिमान, स्वतंत्रता की जननी है। बिना गौशालाओं के दुग्ध उद्योगों की कल्पना व्यर्थ है। दुग्ध उद्योगों के बिना दूध से बने उत्पाद और उनके रखरखाव की कल्पना व्यर्थ है। इन उत्पादों के गुणवत्ता की जांच, उत्पादों के गुणवत्तापूर्ण पोषण को साबित करते हैं। गौशाला में गायों का स्वास्थ्य अच्छा होगा तो स्वाभाविक है कि दूध की गुणवत्ता भी पोषण से भरपूर होगी। दूध दूषित न हो  इसका विशेष ख्याल रखना होगा। दूषित दूध, दूषित जीवन शैली का परिचायक है। दूषित दूध मात्र सफ़ेद जहर है। शुद्ध दूध अमृत है। किसी पदार्थ या भोजन की गुणवत्त्ता, उपयोग की उपयुक्तता होती है। किसी आहार का उसके विशेष लक्षण के अनुरूप होना, भोजन की गुणवत्ता कहलाती है। जैसे खट्टी दही का विशेष लक्षण खट्टा होना है। अतएव खट्टी दही का अपने विशेष लक्षण के अनुरूप होना, दही की गुणवत्ता को साबित करती है। इसी प्रकार दूध में 87.7% पानी, 4.9 प्रतिशत लैक्टोज़ (कार्बोहाइड्रेट ), 3.4 प्रतिशत फैट, 3.3 प्रतिशत  प्रोटीन और  0.7 प्रतिशत खनिज होता है। ये इसका विशेष लक्षण है। यदि दूध अपने विशेष लक्षण के अनुरूप है तो वह गुणवत्तापूर्ण पोषण का प्रतीक है। आज कल देखने को मिल रहा है कि दूध में सामान्यतः पानी मिलाकर दूधिया घर घर दूध बांटता है। यह जग जाहिर है। दूध में पानी मिलाने से दूध की मात्रा बढ़ जाती है। इसके बावजूद सामान्यतः लोगों का मानना है कि पानी मिला दूध दूषित नहीं होता है। जबकि दूध में पानी मिलाने पर दूध का फैट कम हो जाता है। वाह्य स्रोत से मिलाया गया पानी दूध को दूषित भी करता है। इससे दूध की गुणवत्ता में कमी आती है। दूध का गाढ़ापन (फैट) पानी मिलाने पर कम हो जाता है तो इसका गाढ़ापन (फैट) बढ़ाने के लिए दुग्ध उद्योग, दूध में यूरिया मिलाता है। यूरिया एक कार्बनिक यौगिक है। इसका रंग सफेद होता है और इसका इस्तेमाल फसलों के उत्पादन में किया जाता है। यह एक गंधहीन, जहरीला और बेस्वाद रसायन (केमिकल) है। इसे दूध में मिलाने से दूध का रंग नहीं बदलता है। इसे मिलाने से दूध गाढ़ा हो जाता है। दूध में फैट की मात्रा बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। इस रसायन (केमिकल) के कई गंभीर नुकसान हैं। यह आपकी आंतों को खराब कर सकता है और पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। ध्यान रहे कि मिलावटी दूध पीने से आपको किडनी की बीमारी, दिल से जुड़े रोग, अंगों का खराब होना, कम दिखाई देना और कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। यूरिया, दूध की शक्ति को क्षीण कर देता है। दूध में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाने क लिए मेलामाइन नामक पदार्थ मिलाया जाता है। मेलामाइन एक प्रकार का मार्बल पत्थर का बुरादा (पाउडर) होता है। लोगों में मेलामाइन युक्त दूध पीने से से  किडनी की समस्याएं हो रही हैं। आज कल किडनी के रोगी काफी संख्या में बढ़ गए हैं। दूध को लम्बे समय तक चलाने के लिए फॉर्मेलिन नामक रसायन मिलाया जाता है। इससे दूध की शेल्फ लाइफ बढ़ जाती है। अर्थात दूध को अधिक समय तक रखा जा सकता है। फॉर्मेलिन युक्त दूध का उपभोग करने से लोगों में त्वचा सम्बन्धी बीमारी और कैंसर जैसी घातक बीमारी हो रही है। स्टार्च दूध में पाया जाने वाला एक और आम मिलावट है। दूध का घनत्व बढ़ाने के लिए इसमें स्टार्च मिलाया जाता है। यह दूध में मिलाए गए बाहरी पानी का पता लगाने से रोकने में मदद भी करता है। यह दस्त का कारण बन सकता है। शरीर में ज्यादा स्टार्च जमा होने से डायबिटीज जैसी बीमारी का खतरा होता है। दूध को फटने से बचाने और उसकी शेल्फ लाइफ (लम्बे समय तक रखे जाने हेतु) बढ़ाने के लिए आमतौर पर डिटर्जेंट का इस्तेमाल किया जाता है। दूध में डिटर्जेंट (धुलाई का पाउडर) का उपयोग कई संक्रमण और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल जटिलताओं का कारण बनता है। इसलिए यह जांचना बहुत जरूरी है कि आपके दूध में डिटर्जेंट की मिलावट है या नहीं। आप इन मिलावटों की जांच इस प्रकार से कर सकते हैं-

दूध में यूरिया की जांच- एक टेस्ट ट्यूब में एक चम्मच दूध डालें। इसमें आध चम्मच सोयाबीन या अरहर की दाल का पाउडर डालें। मिश्रण को अच्छी तरह से मिक्स कर लें। 5 मिनट बाद टेस्ट ट्यूब में लाल लिटमस पेपर डालें। आधे मिनट के बाद पेपर को निकाल लें। अगर लाल लिटमस पेपर का रंग बदल जाए, यानी वो नीले रंग का हो जाए  तो समझ लें कि दूध में जहरीला यूरिया मिला  है।

दूध में पानी की जांच- लैक्टोमीटर एक वैज्ञानिक उपकरण है। लैक्टोमीटर दूध की शुद्धता मापने वाला उपकरण है। इस यंत्र का आविष्कार लीवरपूल के डिकास द्वारा किया गया। यह शीशे का बना एक छोटा से यंत्र होता है। इसके जरिए दूध के घनत्व के आधार पर दूध की शुद्धता और अशुद्धता का निर्धारण किया जाता है। इस यंत्र के जरिए दूध में पानी मिलाया गया है या नहीं, इसका पता आसानी से लगाया जा सकता है। दूध की शुद्धता को मापने के लिए दूध का सैंपल लिया जाता है। इसके बाद लैक्टोमीटर को दूध में डुबोया जाता है तथा यंत्र पर रीडिंग ली जाती है। सामान्यतः शुद्ध दूध की रीडिंग 32 होती है। दूध में पानी की मात्रा 87 प्रतिशत होती है। इसके कारण इसमें और भी अधिक पानी मिलाए जानी की संभावना रहती है। दूध की तरलता का लाभ उठाकर ही कुछ मिलावटखोर ऊपर से पानी मिला देते हैं। इसके कारण ग्राहक ठगा जाता है। अतिरिक्त पानी मिलाए जाने से दूध की स्वाभाविक तरलता बदल जाती है और उसका घनत्व भी बदल जाता है। यदि घनत्व का मापन कर लिया जाए तो इस बात का आसानी से पता लगाया जा सकता है कि दूध में पानी मिलाया गया है अथवा नहीं। लैक्टोमीटर आर्किमिडीज के सिद्धांत के आधार पर काम करता है। इसके कारण दूध के स्वाभाविक घनत्व में होने वाले परिवर्तन का पता चल जाता है और मिलावटी दूध की पहचान हो जाती है।

मेलामाइन की जांच-मेलामाइन के अवशेषों के लिए एक तरल क्रोमैटोग्राफी ट्रिपल क्वाड्रुपोल टेंडेम मास स्पेक्ट्रोमेट्री (एलसी-एमएस/एमएस) विधि में 2.5% जलीय फॉर्मिक एसिड के साथ प्रारंभिक निष्कर्षण होता है, इसके बाद निस्पंदन, सेंट्रीफ्यूजेशन और कमजोर पड़ने के चरणों की एक श्रृंखला होती है।

दूध में स्टार्च की मिलावट है कि नहीं ये चेक करने के लिए 5 मिली दूध में दो चम्मच नमक या आयोडीन मिला दें। अगर दूध का रंग नीला हो गया तो इसका मतलब है कि दूध में स्टार्च की मिलावट है।

दूध में फॉर्मेलिन की मौजूदगी की जांच करने के लिए 10 मिलीलीटर दूध लें। टेस्ट ट्यूब और उसमें सल्फ्यूरिक एसिड की 2-3 बूंदें डालें। यदि सबसे ऊपर नीला छल्ला दिखाई दे तो दूध मिलावटी है अन्यथा नहीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दूध में मिलावट के खिलाफ भारत सरकार के लिए एडवायजरी जारी की थी और कहा था कि अगर दूध और दूध से बने प्रोडक्ट में मिलावट पर लगाम नहीं लगाई गई तो देश की करीब 87 फीसदी आबादी 2025 तक कैंसर जैसी खतरनाक और जानलेवा बीमारी का शिकार हो सकती है। मिलावटी दूध सफ़ेद जहर है। दूध की गुणवत्ता में कमी दूषित दूध का द्योतक है।

पीने का पानी दूषित है तो वह प्यास बुझाएगा पर आत्मा को तृप्त नहीं करेगा। यह शरीर में अनेक बीमारी पैदा करेगा। उसी प्रकार दूध के दूषित होने पर वह सफ़ेद जहर बन जाता है। अतएव दूध और दुग्ध उत्पाद की पोषक तत्व की गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। अतएव यह कहने में आश्चर्य नहीं होगा कि सामुदायिक स्वास्थ्य ही राष्ट्र की सम्पदा है। मिलावटी दूध को लेकर हम कह सकते हैं कि दूध की पोषकता का शोषण हो रहा है।

लेखकडॉ. शंकर सुवन सिंह

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