सावधान! ‘युवा’ देश के…सिगरेट यानि मौत का घर…! 

~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल 

 देश का भविष्य कही जाने वाली युवा पीढ़ी नशे का शिकार बनती चली जा रही है। नित प्रति बदलते इस परिवेश में नशे के प्रति बढ़ता आकर्षण समाज के लिए घातक सिध्द हो रहा है । युवाओं में नशे की बढ़ती लत ने एक बार फिर से हमें  – एक व्यक्ति , परिवार और समाज के नाते सोचने के लिए विवश कर दिया है। युवाओं के बीच बढ़ता नशे का खतरनाक ट्रेंड समाज को धीरे धीरे खोखला करता चला जा रहा है। नशे का प्रकोप इस कदर हावी है कि – क्या गाँव , क्या शहर बस चारो ओर नशे का तांडव हो रहा है । चाय -पान की गुमटियों से लेकर हम जिस ओर नज़र दौड़ाते हैं। उस ओर ही नशे की गिरफ्त में देश के कर्णधार कहे जाने वाले युवा मिल जाएँगे । चाय के साथ सिगरेट का हाल ऐसा  बन चुका है , जैसे चाय पीने का मतलब ही सिगरेट पीना है। आज इसके हालात तो ये हो गए हैं कि – कोई आम व्यक्ति यदि चाय की दुकानों पर पहुँच जाए तो सिगरेट का धुआँ उड़ाती युवा पीढ़ी के बीच साँस लेना मुश्किल हो जाएगा । सिगरेट पीते हुए धुएँ  के छल्ले  बनाने का हुनर दिखाने वालों की भी लंबी फेहरिस्त मिल जाएगी ।ऐसा भी नहीं है कि – इसमें सिर्फ युवक ही हैं । नशे में युवतियों ने भी बराबर की भागीदारी कर ली है । सब सिगरेट का कश लगाते हुए मिल जाएंगे । तंबाकू उत्पाद बनाने वाली कंपनियाँ  मोटे- मोटे अक्षरों में चेतावनियाँ जारी करती हैं कि – तंबाकू से कैंसर होता है । धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । लेकिन मज़ाल क्या कि कोई थोड़ा भी ठिठक जाए। डॉक्टर चिल्लाते-चिल्लाते थक गए हैं कि सिगरेट और अन्य नशों से सावधान रहिए लेकिन इनकी सुनता ही कौन है । कई सारी रिसर्च बताती हैं कि – सिगरेट में इतने घातक केमिकल्स मिलाए जाते हैं जो सीधे गंभीर बीमारियों और मौत का कारण बनते हैं। सिगरेट में मिलाए जाने वाले केमिकल – निकोटीन का उपयोग खाद बनाने में किया जाता है। टार – सड़क बनाने में. मेथेनॉल – हवाई जहाज के फ्यूल में, एसिटोन – नेल पॉलिश रिमूवर में , आर्सेनिक का उपयोग – चूहा मारने की दवा बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही टालवीन का उपयोग – इंक बनाने में और पोलोनियम -210का उपयोग एटम बम बनाने और  अमोनिया का उपयोग टॉयलेट क्लीनर बनाने में किया जाता है। 

इन उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि – कितने घातक केमिकल्स सिगरेट के धुएँ के साथ हमारी जिंदगी को खत्म करने लग जाते हैं। लेकिन क्या हम सुधरने का नाम लेने वाले हैं ? इतना ही नहीं कई सारी रिसर्च ये भी कहती हैं कि -सिगरेट में लगभग 5 हजार से 7 हजार की संख्या  में  केमिकल्स होते हैं।ये सारे केमिकल हमारे शरीर में कई सारे घातक प्रभाव छोड़ते हैं जोकि विभिन्न गंभीर बीमारियों के कारण बनते हैं। सिगरेट से  टीबी, अस्थमा , फेफड़ों का कैंसर , मुँह का कैंसर ,  दिल से जुड़ी हुई बीमारियाँ , डिमेंसिया , अल्जाइमर , सिज्रोफेनिया आदि गंभीर समस्याएँ होने लगती हैं । इसके अलावा आँखों से जुड़ी हुई समस्याओं को लिए भी सिगरेट स्मोकिंग जिम्मेदार  है । कहने का अभिप्राय यह कि इन गंभीर समस्याओं के मूल में सिगरेट स्मोकिंग है । स्मोकिंग के चलते हर वर्ष हजारों की संख्या में लोग अपनी जान गवाँते हैं । लेकिन अपनी आँखों के सामने ये सब होने के बावजूद भी कोई इससे सबक लेने को तैयार नहीं है।  ऐसा भी नहीं है कि सिगरेट पीने वाले इन सब बातों से अनभिज्ञ हैं  बल्कि सिगरेट से होने वाले गंभीर खतरों के बारे में जानते हुए भी वे  अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। यानी ये स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसे आ बैल मुझे मार । फैशन के इस दौर में युवाओं के बीच  सिगरेट स्मोकिंग भी कूल बनने और दिखने का  एक टूल सा बन गया है। इसी के चलते अब चाहे स्टूडेंट एरिया हों , याकि वर्किंग एरिया . हर जगह  सिगरेट पीने का खतरनाक चलन अपने उफान पर देखने को मिलता है ।

 तिस पर भी मुश्किल ये कि – यारी दोस्ती के बीच सिगरेट पीने को गहरी दोस्ती का पर्याय माना जाने लगा है । यानि यदि दोस्त साथ में सिगरेट पीते हैं तो दोस्ती पक्की होने की गारंटी औप यदि सिगरेट स्मोकिंग को ना तो दोस्ती पक्की नहीं मानी जाएगी । इस प्रवृत्ति ने भी स्मोकिंग बढ़ाने में अच्छा खासा योगदान दिया है । इसके अतिरिक्त समाज के तौर पर भी हमने अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में बड़ी भारी चूक की है। समाज ने नैतिकता और अनुशासन की बागडोर अपने हाथों से छोड़ दी । बमुश्किल इन दस से पंद्रह वर्षों के अंदर – अंदर समाज में संक्रमण की स्थिति आ गई । बड़ों की इज्जत करना दूर की कौड़ी बन गई और चौतरफा आवारागर्दी देखने को मिलने लगी । शहर हों या गाँव हों – पहले जहाँ सिगरेट या अन्य नशे की सामग्रियों पर एक स्तर तक सेंसरशिप जैसा मामला था । नशा करते पाए जाने पर कोई भी डांट-डपट लगा सकता था । घर तक शिकायत पहुँचने का डर होता था । लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है । अब कहीं भी कोई रोक-टोक नहीं है। तथाकथित माडर्न और शिक्षित समझी जाने वाली युवा पीढ़ी बड़ों को मुँह चिढ़ाती रहती है । सिगरेट का कश लगाती रहती है । मजाल क्या कि थोड़ा भी झेंप जाए। युवा सोचें कि क्या आप ऐसे ही देश का भविष्य बनने जा रहे हैं ? युवा होने का दंभ भरने वाली ये पीढ़ी क्या युवा होने के मायने भी जान पाई है ?  खुद सोचें कि क्या सिगरेट स्मोकिंग ही आपकी पहचान बनेगी ? देश के मजबूत कंधों और भविष्य के रूप में परिभाषित युवाओं की यदि बुनियाद ही खोखली होगी तो कैसे देश की प्रगति हो सकेगी । देश के युवाओं को  ये स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि  सिगरेट यानि मौत का घर है । अब खुद ही सोचें कि हम किस ओर खड़े हैं – जीवन या मौत की ओर ? जितना जल्दी हो सके – उतना जल्दी सिगरेट छोड़ दें ….वर्ना कहीं ऐसा न हो कि जिंदगी ही साथ छोड़ दे । 

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