अन्यायों से लड़ता,
सूर्य सा सुलगता,
जो हो कर्तव्य निभाता,
अपना पथ स्वयं बनाता,
समझ लेना युवा है…
हुँकार अपनी भरता,
आँधियों को चीरता,
समर को खदेड़ता,
विद्रोही स्वर दिखाता,
समझ लेना युवा है…
प्रेम में उलझा हुआ,
सपनों से झुलसा हुआ,
बहुत दूर तक उड़ने को संकल्पित हुआ,
पर अपनों की आशाओं से बंधा हुआ,
समझ लेना युवा है…
भोर को अपना समझता हो,
सांझ से बैर निभाता हो,
हर दिन कुछ नए को समर्पित होना ही,
अपना काम समझता हो,
समझ लेना युवा है…
युवा कोई वर्ष नहीं,
तपस्या है जीवन भर की,
संकल्पों की पूर्ति करते हुए,
जिसमे जीवन जीने की जिजीविषा हो,
समझ लेना युवा है…
दीपक शर्मा ‘आज़ाद’
Bahut Khoob Deepak ji…:) 🙂