सन 1990 से पहले कांग्रेस पार्टी की सरकार ने देश पर एक-छत्र राज्य किया था. 90 के दशक से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विदेशी पूंजी सभी विकासशील देशों में घुसने के लिए आतुर है, जो केन्द्रीय सत्ता को कमज़ोर करके ही सम्भव हो सकता है. इंडोनेशिया में केन्द्रीय सत्ता विदेशी पूंजी एवं निजी क्षेत्र के कूटनीतिक बंधन (nexus) के कारण स्वयं को असहाय स्थिति में पा रही है. अनेक अफ्रीकी देश केन्द्रीय सत्ता की कमजोरी से गृह-युद्ध, भुखमरी आदि अनेक विभीषिकाएँ झेल रहे हैं. आज देश की दो मुख्य पार्टियों में से कोई भी केवल अपने दम पर एक मजबूत सरकार बना सकती हैं. परन्तु उसके लिए जनता को, केवल मई 2014 के आम चुनाव के लिए, अपनी पसंद को दो मुख्य पार्टियों तक ही सीमित करना होगा. विधान सभा के लिए वे मुख्य पार्टियों को भूल अपनी पसंद की स्थानीय सरकार हमेशा चुन सकते हैं.
इस विषय पर सन 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का संसद के दोनों सदनों में दिया गया भाषण महत्वपूर्ण है. उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार सत्ता में आयी थी और देश की दोनों प्रमुख पार्टियां भाजपा एवं कांग्रेस वहां पर हाशिये पर आ गयीं थीं. केंद्र में साझा सरकारों की प्रथा चल पड़ी थी. परंतु उन्होनें ‘दो पार्टी’ प्रथा की ही वकालत की. पूर्व राष्ट्रपति ने देश के विकास विषय पर ‘इंडिया 2020’ पुस्तक भी लिखी है. हालांकि वे स्वतन्त्रता संग्राम की 150 वीं वर्षगांठ के अवसर पर बोल रहे थे, परन्तु भाषण में देश को एक विकसित राष्ट्र देखने की उनकी दिली इच्छा ही प्रकट हो रही थी.
1857 का स्वतन्त्रता संग्राम एक छोटी शुरुआत थी। तभी से अनेक क्षेत्रों में प्रतिभावान व्यक्तित्व उभर कर सामने आने लगे. वह एक जज्बा था जिसमें वे सभी अपने-अपने तरीके से देश की स्वंत्रता के लिए योगदान करना चाहते थे. साइंस के क्षेत्र में सर सीवी रमन, मेघनाथ साहा आदि ने यह सिद्ध किया कि भारतीय विश्व के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों से किसी तरह कम नहीं हैं. श्री जमशेदजी टाटा ने देश में स्टील उद्योग स्थापित किया. शिक्षा के क्षेत्र में सर सैयद अहमद खान ताथा पंडित मदन मोहन मालवीय ने विश्वविद्यालय स्थापित किये. साहित्य एवं कविता के क्षेत्र में श्री रविंद्रनाथ टेगोर ने नोबेल पुरुस्कार जीता. पूर्ण स्वतन्त्रता के प्रति उनके आवेगपूर्ण उद्गारों ने अनेकों को प्रेरित किया:
“जहां पर मनुष्य बिना किसी डर के अपना सर ऊंचा कर जी सकें, हे मेरे परम पिता! उस स्वतन्त्रता के स्वर्ग में मेरे देश को जगा”
तमिल कवि श्री सुब्रमनियम भारती ने एक महान भारत के प्रति अपने गहरे प्यार को प्रदर्शित करते हुए लिखा, “जहां स्त्रियों को सम्मान मिलेगा तथा उन्हें शिक्षा एवं अपनी प्रतिभा विकसित करने के पूरे अवसर मिलेंगे”. अनेक क्षेत्रों की इन प्रतिभाओं से प्रेरणा पाकर असंख्य लोगों ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलनों में भाग लिया. पूर्व राष्ट्रपति ने उन सब व्यक्तियों की याद दिलाकर सांसदों को इस देश की जनता की शक्ति का ही परिचय कराया था. आज भी भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है जो हर क्षेत्र में विश्व के सर्वोत्तम से स्पर्धा कर सकते हैं. देश के लिए साझा सरकारें कदापि सर्वोत्तम विकल्प नहीं हो सकतीं. रविंद्रनाथ टैगोर के उपरोक्त उद्गारों से प्रेरणा लेकर तथा निडर होकर वे मीडिया में दोनों मुख्य पार्टियों के बारे में अपने विचार व्यक्त करें, जिससे जनता को अपना मत बनाने में सहायता मिले और देश को केंद्र में किसी भी एक पार्टी की मजबूत सरकार मिल सके.
बंधुवर झा साब – आप का लेख अच्छा लगा – यदि अन्यथा न ले तो थोडा सा संशोधन कर दूँ – कांग्रेस का एकछत्र राज्य १९६७ में धराशायी हो गया था जब पहली बार देश के नौ राज्यों में कांग्रेस का सफाया हो गया था और पूरी हिंदी पट्टी पर विरोधी पक्ष की सरकारे बनगई थी. यह कांग्रेस के लिए एक तरह का वज्रपात था . . दूसरा झटका इमरजेंसी के तुरंत बाद लगा था जब केंद्र में जनता दल की सर्कार बनी और मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री बने . यह अलग बात है वह सरकार अपने आंतरिक झगड़ों और कुछ नेताओं की व्यक्तिगत ऊँची आकांक्षाऔ के कारण चल नहीं सकी . धन्यवाद .
बहुत बहुत धन्यवाद्