मन में गर उत्साह रहे तो रोजाना दीवाली है,
वरना इस महंगाई में तो रूखी-सूखी थाली है।।
जो गरीब है, वह भी तो त्यौहार मनाया करता है,
लेकिन पूछो तो खुशियाँ वह कैसे लाया करता है।
भीतर आँसू हैं, बाहर मुस्कान दिखाई देता है,
पीड़ा भी धन वालों को इक गान सुनाई देता है।
सच पूछो तो मेहनतकश की जेब यहाँ पर खाली है।
मन में गर उत्साह रहे तो रोजाना दीवाली है…
धन है जिनके पास वही अब, धन्य यहाँ कहलाता है,
लक्ष्मी को लेकर उल्लू भी ऐसे दर पर जाता है।
ज्ञान तुम्हारे पास है केवल अगर नही कुछ पैसा है,
तो फ़िर ऐरा-गैरा भी कह देगा ऐसा-वैसा है।
पाखंडी है दौर यहाँ सच्चाई लगती गाली है।।
मन में गर उत्साह रहे तो रोजाना दीवाली है……
ऊंचा-नीचा, आडा-तिरछा, यह समाज का चेहरा है,
जो निर्धन है उसकी हर मुस्कान पे दिखता पहरा है।
लाखो बच्चे भूखे है, मुस्कान कहाँ से लायेंगे?
समता में डूबा हम हिंदुस्तान कहाँ से लायेंगे?
जा कर देखो बस्ती में तुम कहाँ-कहाँ कंगाली है।।
मन में गर उत्साह रहे तो रोजाना दीवाली है……
स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।
कल 16/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सच पूछो तो मेहनतकश की जेब यहाँ पर खाली है।
मन में गर उत्साह रहे तो रोजाना दीवाली है…
बिलकुल सही कहा है बहुत सुन्दर रचना है एक एक शब्द सत्य के करीब बधाई और दीपावली की शुभकामनायें