कुलदीप विद्यार्थी
4.गज़ल
आज फिर बेटी लूटी है मौत ने उसको छुआ,
मुल्क मेरा हो चला जैसे कि, अपराधी कुँआ,
जाति के झगड़े कहीं तो हैं कहीं दंगे यहाँ,
मुस्कुराते देश को जैसे लगी हो बददुआ,
दूर से सब देखने वालों सभी से प्रार्थना,
मौत के नजदीक है यह मुल्क सब कीजे दुआ,
दंश जिसको झेलते आयी हमारी पीढ़ियाँ,
जातियों के नाम लड़वाते दिखे बबुआ बुआ,
अन्नदाता गाँव में और नाम पर उसके यहाँ,
राजधानी में सभी अब खेलते दिखते जुआ,
आँख बूढ़ी हो गई यह सोचकर के बारबां,
वो कमाए, तब जले चूल्हा, मिला केवल धुंआ।