प्रसिद्ध लेखिका सुश्री तसलीमा नसरीन जो प्रायः मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर रहती है और अपनी प्रखर स्पष्टवादिता के कारण अपने देश बांग्लादेश से निर्वासित होने का वर्षो से दंश झेल रही है, की विभिन्न पुस्तकें व लेख मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध में समय समय पर ज्ञानवर्धन करते रहते हैं | इसी संदर्भ में (दैनिक जागरण में 18.11.2017 को प्रकाशित) तसलीमा जी का एक लेख “बांग्लादेश में कैसे बचेंगे हिन्दू” पढने को मिला |
निसंदेह यह सत्य हैं कि अनेक विपदाओं में जीने को विवश हिन्दुओं को विलुप्त करने के षड्यंत्र पाकिस्तान के समान बांग्लादेश में भी भयावह रूप से चलाये जा रहें हैं | इस लेख का अधिकाँश भाग अत्यंत स्पष्ट व तथ्यपरक हैं साथ ही इस्लामिक जिहादियों की मानसिकता पर निर्भीक प्रहार भी करता हैं | उन्होंने अपने लेख द्वारा यह भी स्पष्ट किया है भारत और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की स्थिति में अत्यधिक अन्तर है | भारत में मुसलमानों की जनसँख्या पुरे बांग्लादेश की जनसँख्या से अधिक हैं | परन्तु जब बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार होता हैं तो वहां की सरकार अल्पसंख्यकों (हिन्दुओं आदि) के प्रति कोई सहानभूति नहीं रखती, जबकि भारत में अगर हिन्दुओं द्वारा मुसलमानों के कुकृत्यों का विरोध भी किया जाय तो भारत का प्रशासन व बुद्धिजीवी समाज केवल हिन्दुओं को ही दण्डित करने के मार्ग तलाशता हैं , क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक का दबाव प्रमुख कारण बना हुआ हैं | जबकि बांग्लादेश व पाकिस्तान आदि में तो अल्पसंख्यकों (हिन्दुओं आदि) के वोटों का कोई महत्व ही नहीं होता , तभी तो वहां के हिन्दू आदि अल्पसंख्यक निरंतर प्रताडित किये जा रहें हैं | उनके इस लेख के अनुसार पिछले दिनों रंगपुर (बांग्लादेश) में लगभग दस हज़ार मुसलमानों ने हिन्दुओं की बस्तियों में उनके घरों में लूटपाट करने के बाद आग लगा दी , कारण यह बताया गया कि किसी हिन्दू ने फेसबुक पर इस्लाम का अपमान किया था | जबकि वह अफवाह एक मुसलमान द्वारा ही फैलाई गयी थी और झूठी फेसबुक का सहारा लिया गया | इसप्रकार मुसलमानों की सुनियोजित साजिशों से सैकडो व हज़ारों की संख्या में दंगाइयों की भीड़ द्वारा हिन्दू बस्तियों में आगजनी ,लूटमार, अपहरण व हत्याये होने से वहां के हिन्दू पलायन करने के लिए विवश किये जाते आ रहें हैं | यहाँ यह भी कहना उचित होगा कि पाकिस्तान में भी अनेक प्रकार से हिन्दुओं को पीड़ित करके धर्मांतरण करने या फिर पलायन करने का निरंतर दबाव बना रहता हैं |
परन्तु तसलीमा जी का यह लिखना कि “जिसप्रकार बांग्लादेश में हिन्दू विरोधी मुसलमानों की संख्या बढ़ रही हैं उसी प्रकार भारत में मुस्लिम विरोधी हिन्दुओं की संख्या भी बढ़ रही हैं” , कहीं न कहीं उनकी उदार व सहिष्णु हिन्दू समाज के चारित्रिक व नैतिक मूल्यों के प्रति अज्ञानता का परिचय कराता हैं | उन्हें यह अवश्य ज्ञात होगा कि इस्लाम में अपने जन्म से ही (मूल इस्लामी पुस्तकों के अनुसार) अविश्वासियों (काफिरों) पर हमले करके उनको लूटना , इस्लाम स्वीकार करवाना और न मानने पर उनको नष्ट कर देना आदि मुख्य हैं | लुट में आई धन -दौलत और बालिकाओं-महिलाओं आदि को “मालेगनीमत” समझ कर आपस में बांटना भी इन मुस्लिम लुटेरों को सहर्ष स्वीकार हैं | इसका अभिप्राय यह हुआ कि इस्लाम में मानवीय नैतिकता , आध्यात्मिकता व चारित्रिक सिद्धान्तों का कोई मूल्य नहीं हैं | साथ ही इस्लाम में कोई स्वतः कुछ मानें या न मानें इस पर भी अनेक भ्रम फतवों के माध्यम से बनायें जाते रहते हैं | अपने विवेक से कोई कुछ उचित -अनुचित या सही – गलत मानें इसके लिए भी वह स्वतंत्र नहीं हैं |
अतः यह स्पष्ट होना चाहिए कि मुस्लिम विरोधी हिन्दुओं की संख्या बढने का मुख्य कारण क्या है ? जब यह सर्वविदित ही है कि किसी भी क्रिया की प्रतिक्रिया तो होती ही हैं, इसलिए जब सामूहिक मुस्लिम कट्टरता उनसे (हिन्दुओं) घृणा करती हो और उन निर्दोषों को बिना विवाद के हर संभव प्रयासों द्वारा नष्ट करने के लिए अनेक अमानवीय अत्याचारों का सहारा लेती हो और अपने इस आपराधिक व आतंकी मनोवृति में कोई परिवर्तन या संशोधन भी न करें और न ही कोई विचार करें तो फिर हिन्दू क्या करें ? क्या वह योही लुटता पिटता रहें ? साम्प्रदायिक दंगों में वह अपने व्यापारिक स्थलों व निवासों को लुटवाकर जलवाता रहें ? क्या वह अपनी बहन-बेटियों की अस्मत लुटने पर भी चुप रहें ? क्या वह समाज में अपराध व आतंकवाद का कोई प्रतिकार न करें , क्यों ? जबकि मुसलमान ऐसा करना अपना पवित्र कार्य मानते हैं | ऐसा वे कट्टरपंथी मुसलमान इसलिए करते हैं कि “अल्लाह की राह पर अल्लाह के लिए जिहाद” करने की मानसिकता उनमें बचपन से ही विकसित की जाती हैं | उनकी अरबी संस्कृति भी यही पाठ पढ़ाती है कि धारदार हथियार से गैर मुस्लिमों (काफिरों) के गले काटने से शबाब के साथ जन्नत भी मिलती हैं | इसकी पुष्टि में प्राचीन मुग़ल इतिहास में असंख्य उदाहारण मिलते हैं | वैसे भी वर्तमान काल में पिछले कुछ वर्षों से इस्लामिक स्टेट के आतंकी काफिरों के सिर काट कर और उसका सोशल मिडिया पर बेहिचक प्रचार करके अपनी अरबी संस्कृति व दुर्दांत मानसिकता से सभ्य समाज को भयभीत कर रहें हैं | विश्व में इस्लामिक आतंकवादियों के अनेक संगठन अपने इस्लामी झंडे को सम्पूर्ण विश्व में लहरा कर उसका इस्लामीकरण (दारुल-इस्लाम ) करने के उद्देश्य से जब निरन्तर सक्रिय रहेंगे तो गैर मुस्लिमों को कैसे बचाया जा सकेगा ? निसंदेह ऐसी अमानवीय मनोवृति का एक तरफा विकास मदरसा शिक्षा व्यवस्था का ही परिणाम हैं | अतः क्या यह कहना उचित नहीं होगा कि जब तक इस्लामी दर्शन व विद्याओं में आवश्यक परिवर्तन नहीं होगा तब तक बांग्लादेश व पाकिस्तान सहित विश्व के अन्य मुस्लिम बहुल देशों में “हिन्दू या कोई अन्य गैर मुस्लिम कैसे बचेंगे” की संभावनाओं की खोज व्यर्थ ही रहेगी ?
इसलिए ऐसे वातावरण में सनातन वैदिक धर्म पर आधारित हिन्दू संस्कृति को समझ कर अपनाने से सकारात्मक सुधार अवश्य होंगे | हमारी संस्कृति “वसुधैवकुटूम्ब्कम” हमको सभी पृथ्वी वासियों को एक परिवार मानने का सन्देश देती हैं | “सर्वे भवन्तु सुखिनः” अर्थात सभी सूखी रहें हम ऐसी ही मानसिकता में पले व बड़े होकर जीवन जीने में विश्वास करते हैं | हम हिन्दू अपने कार्यों को पाप व पुण्य के आधार पर विचार करके व्यवहार करते हैं | हम “जीयो और जीने दो” की मानसिकता को सर्वोच्च मानते हैं | प्रसंगवश यहाँ यह कहना भी किसी भी प्रकार से अनुचित नहीं होगा कि अगर बहुसंख्यक हिन्दुओं के कण कण में मानवता , उदारता व सहिष्णुता के लक्षण न होते तो सन 1947 में देश का धर्माधारित विभाजन अधूरा न हुआ होता और न ही आज हमारा देश सेकुलर होने के कारण इस्लामिक जिहाद व अन्य विभिन्न समस्याओं से जूझता |
विनोद कुमार सर्वोदय